
क्या है कहानी, क्यों पड़ा कोलार नाम
कभी एक पिछड़े गांव की शक्ल में छोटी-छोटी पगडंडियों के बीच रहने वाली बसाहट को यह मालूम नहीं था कि आगे चलकर यह बंजर सा इलाका राजधानी की खास पहचान बन जाएगा। शहर से काफी दूरी पर स्थित इस हिस्से को भोपाल के नक्शे से अलग थलग ही रखा गया था। आजादी के दौर में इसके पिछड़ेपन के साथ जीने वाले कुछ लोग अब भी मौजूद हैं, जिनकी स्मृति में अब भी वहीं पुराना कोलार उतना ही ताजा है। कोलार बांध और कालियासोत नदी के कारण इस इलाके का नाम कोलार पड़ा।
30 साल पहले दिन में भी डरते थे लोग
वह बताते हैं कि 30 साल पहले कोलार मुख्य मार्ग से दिन के उजाले में भी लोग अकेले निकलने से डरते थे। चारों तरफ जंगल, पहाड़ और जंगली जानवर यहां घूमते नजर आते थे। दूर-दूर तक आबादी का नामोनिशान नहीं था। आजादी के बाद यहां पंचायती राज चलता था। उस दौर में यह इलाका धीरे-धीरे विकास कर रहा था। नगर पालिका में शामिल होने के कुछ सालों पहले ही से इसे आधुनिक शहरी क्षेत्र के रूप में विकसित किए जाने के प्रयास होने लगे थे।
नए भोपाल से मिला विकास
चूंकि यह नए भोपाल से सटा हुआ था लिहाजा इसे विकसित होने की संभावनाएं भी बहुत थीं। समय ने करवट बदला और नगर पालिका में शामिल होने के साथ ही यहां बड़ी-बड़ी इमारतें, स्कूल, पुल, फोरलेन सड़कें, बड़े मॉल, कॉलेज, अस्पताल स्थापित हो गए। आज करीब ढाई लाख आबादी ने कोलार को उपनगर के रूप में खास पहचान दिलाई है। नयापुरा तिराहा जहां आज सड़कों पर यातायात का भारी दबाव है और हजार मकान बन चुके हैं। ये रास्ता पहले महज आठ फीट चौड़ा हुआ करता था। इस रास्ते से दिनभर में इक्का-दुक्का लोग ही निकलते थे। उस समय क्षेत्र में रहने वाले मीणा समाज के छोटे बच्चे स्कूल की पढ़ाई के लिए छह किलाेमीटर दूर जाया करते थे।