
प्रदेश में 2 लाख 84 हजार अध्यापक और डेढ़ लाख नियमित शिक्षक हैं। इनमें से एक लाख से ज्यादा शिक्षक हमेशा गायब रहते हैं। इस कारण स्कूलों में पढ़ाई प्रभावित होती है। ऐसा ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा हो रहा है। वरिष्ठ अफसरों को दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षकों के न जाने से स्कूल बंद रहने और दो-तीन शिक्षक होने पर बारी-बारी से स्कूल जाने का फीडबैक भी मिला है। इसे देखते हुए विभाग ई-अटेंडेंस व्यवस्था को प्रभावी तरीके से लागू करने की कोशिशों में जुट गया है। अफसरों का कहना है कि इस व्यवस्था से सही स्थिति सामने आ पाएगी।
उल्लेखनीय है कि स्कूल शिक्षा विभाग के एसीएस रहते हुए एसआर मोहंती मुख्यमंत्री तक को बता चुके हैं कि 55 फीसदी अध्यापक स्कूल नहीं जा रहे हैं। स्कूल शिक्षा विभाग अब शिक्षकों की गैरहाजिरी के ठोस प्रमाण जुटाने पर काम कर रहा है। एक बार प्रमाण इकठ्ठे हो गए तो कार्रवाई भी ठोस ही होगी। संविलियन की मांग कर रहे अध्यापक छठवां वेतनमान मिलने के चंद दिन बाद ही अध्यापकों ने स्कूल शिक्षा विभाग में संविलियन की मांग शुरू कर दी है। अब वे सरकार पर दबाव बना रहे हैं कि उन्हें विभाग में शामिल करें। ऐसा हुआ तो अध्यापकों को नियमित शिक्षकों जैसी सुविधाएं स्वत: मिल जाएंगी।
अधिकारियों का फोकस कमाई पर
स्कूलों का संचालन ठीक प्रकार से हो इसके लिए कई अधिकारियों को नियुक्त किया गया है। उनका काम है कि वो नियमित रूप से स्कूलों का निरीक्षण करें। अधिकारी नियमित निरीक्षण पर जाते भी हैं परंतु कार्रवाई नहीं करते। बात बिगड़ जाए तो नोटिस जारी कर देते हैं। दरअसल, कई जिलों में डीईओ प्रभारी हैं। डीपीसी से लेकर सीएसी तक सभी अस्थाई हैं। उनकी पदस्थापनाओं में घूसखोरी होती है। ऐसे पदों पर अध्यापकों की भरमार है। अब जबकि वो घूस देकर पदस्थापना हासिल करते हैं तो उसकी वसूली भी करते हैं। स्कूलों के निरीक्षण के नाम पर घूस वसूली एक परंपरा बन गई है।