
उन्होंने कहा कि वास्तविकता यह है कि अधिसूचित क्षेत्र की अधिसूचित फसल की कटाई का प्रयोग किसान की मौजूदगी में किया जाता है। कटाई प्रयोग के आधार पर वास्तविक फसल उपज तय की जाती है। यदि क्षेत्र में लगातार कम फसल उत्पादन दर्ज होती है तो थे्रस होल्डिंग का औसत कम हो जाता है। वास्तविक फसल यदि थे्रसहोल्ड से कम होती है तो बीमा राशि की पात्रता होती है।
श्री कोठारी ने कहा कि फिर वास्तविक उपज यदि थ्रेशहोल्ड से अंतर अधिक है तो बीमा राशि अधिक होती है। सीहोर जिले के आष्टा विकासखंड व नसरूल्लागंज विकासखंड में बीमा राशि प्राप्त नहीं हुई क्योंकि वास्तविक उपज थे्रसहोल्ड से अधिक पाई गई। इसी तरह रेहटी के कई हल्कों में बीमा राशि प्राप्त नहीं हुई है, क्योंकि थे्रेशहोल्ड उपज से अधिक पाई गई। जहाॅ कम बीमा राशि आई है उसका कारण बहुत कम अन्तर का होना है। देखने में आया है कि रेहटी पटवारी हल्का 44 में बावरी में सोयाबीन वास्तविक उपज 892 कि.ग्रा. प्रति हेक्टयर पाया गया। जबकि सोयाबीन की थ्रंशहोल्ड 894 कि.मी. प्रति हेक्टयर है।
उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश की सरकार किसानों की सरकार है जिसने मायनस 10 प्रतिशत ब्याज पर कर्ज देकर किसानों को राहत नहीं दी बल्कि खेती को फायदे का धंधा बनाया है। कांग्रेस के शासनकाल में किसान कर्ज तले दबा हुआ था।