
अभियोजन के अनुसार एमपीएसआईडीसी के तत्कालीन अध्यक्ष व संचालक मंडल ने वर्ष 2003-04 की अवधि में लोन देने के नियम व प्रावधानों का उल्लंघन किया था। मंडल ने नियमों को ताक पर रखते हुए सोम डिस्टलरी के संचालक जगदीश अरोरा और अजय अरोरा के साथ सांठगांठ कर उन्हें नियम विरुद्ध लोन दिया। अरोरा बंधुओं को एक बार 380 करोड़ और दोबारा 339 करोड़ रुपए (कुल राशि 719 करोड़) का लोन न केवल स्वीकृत किया बल्कि लोन की राशि का एकमुश्त भुगतान भी कर दिया गया।
एमपीएसआईडीसी के अध्यक्ष व संचालक मंडल ने लोन देने से पहले डिफाल्टर कंपनी से न तो प्रोजेक्ट रिपोर्ट मांगी और न ही लोन प्रदान करने के एवज में कंपनी की कोई संपत्ति को अंडर टेक किया। इसके अलावा कंपनी के प्रवर्तक संचालकों से कोलेटरल सिक्युरिटी भी नहीं ली। ईओडब्ल्यू ने 24 जुलाई 2004 को आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी।