डैमेज कंट्रोल कर रहे हैं शिवराज सिंह, कैलाश और प्रहलाद की तारीफ में कसीदे पढ़े

शैलेन्द्र गुप्ता/भोपाल। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर अब 2018 का चुनावी प्रेशर साफ दिखाई देने लगा है। वो हर अवसर का पूरा फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं। एक तरफ प्रदेश के नाराज वर्गों को मनाने की कोशिश कर रहे हैं तो दूसरी तरफ भाजपा में नाराज नेताओं की नाराजगी दूर करने का भी हर संभव प्रयास कर रहे हैं। भाजपा के कई दिग्गज नेताओं को किनारे कर चुके शिवराज सिंह ने बुधवार को युवा मोर्चा के प्रदेश पदाधिकारियों की बैठक में कैलाश विजयवर्गीय और प्रहलाद पटेल को साधने की कोशिश की। 

शिवराज सिंह ने पुराने दिन याद करते हुए कहा कि युवा मोर्चा से पार्टी को कई नेता मिलते हैं। जब मैं प्रदेश युवा मोर्चा अध्यक्ष था तो प्रहलाद पटेल महामंत्री थे और कैलाश विजयवर्गीय प्रदेश मंत्री थे। आज ये ऐसे नेता हैं, जिनमें नेतृत्व दिखता है।

याद दिला दें कि दर्जनों दिग्गज नेताओं में प्रहलाद पटेल और कैलाश विजयवर्गीय भी 2 ऐसे नाम हैं जो शिवराज सिंह की राजनीति का शिकार हो चुके हैं। प्रहलाद पटेल को तो शिवराज सिंह ने फ्रीज कर रखा है। पटेल की तिलमिलाहट उनके बयानों में अक्सर दिख जाती है। कैलाश विजयवर्गीय को भी उन्होंने सीमित दायरे में बांधने की कोशिश की। वो तो कैलाश विजयवर्गीय की रणनीति थी कि वो शिवराज सिंह की पकड़ से बाहर निकल गए और राष्ट्रीय राजनीति में जाकर जम गए परंतु इंदौर में कैलाश विजयवर्गीय को छोटे दिखाने में शिवराज सिंह ने कोई कसर नहीं छोड़ी। अब जबकि चुनाव नजदीक आ रहे हैं तो शिवराज सिंह को सभी की जरूरत महसूस हो रही है। वो समझ चुके हैं कि इस बार उनके लोकलुभावन भाषणों से काम नहीं चलने वाला। सबका साथ चाहिए नहीं तो दिग्विजय सिंह जैसी हालत हो जाएगी। अत: वो डैमेज कंट्रोल पर लगे हुए हैं। 

भाजपा कार्यकर्ताओं पर अविश्वास कर 'शिवराज के सिपाही' नाम से अपने समर्थकों की प्राइवेट फौज तैयार करने वाले शिवराज सिंह ने युवा मोर्चा के कार्यकर्ताओं को कुछ ऐसे टिप्स दिए जिससे जनता में शिवराज सिंह सरकार के खिलाफ बन चुकी नेगेटिविटी कुछ कम हो जाए। उन्होंने कहा कि युवा मोर्चा छोटे कस्बों में महीने में एक दिन हाथ ठेला लेकर निकले और संपन्न घरों से खिलौने इकठ्ठे करे और उसे गरीबों में बांटे। इसी तरह घरों से भोजन लेकर जरूरतमंदों का पेट भरे। याद दिला दें कि इससे पहले शिवराज सिंह ने अपने आनंद मंत्रालय के तहत इसी तरह के प्रयास किए थे जो पूरी तरह से बिफल हो गए। अब उन्हे पार्टी के कार्यकर्ता याद आने लगे हैं। 

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