मजेदार जिंदगी के लिए भरा पूरा घर छोड़कर वृद्धाश्रमों रह रहे हैं बुजुर्ग

इंदौर। यूं तो वृद्धाश्रम लावारिस वृद्धों के जीवन यापन के लिए बनाए जाते हैं परंतु यहां भरा पूरा परिवार और मोटी पेंशन के बावजूद कई वृद्ध आश्रमों में रहने के लिए आ रहे हैं। दरअसल, वो अपने परिवार में होने वाले तनाव से परेशान होते हैं। वृद्धाश्रमों में उन्हे अपनी आयुवर्ग की कंपनी मिल जाती है और लाइफ कंफर्ट हो जाती है। आश्रम प्रबंधन बुजुर्गों को प्रवेश देने से इंकार कर देता है तो सांसद व विधायकों के सिफारिश लगवा देते हैं। 

शहर के सबसे बड़े आस्था वृद्धाश्रम में हर महीने ऐसे कई केस आते हैं। कोई संतानों की धमकी से नाराज होकर तो कोई अपना आत्मसम्मान कायम रखने और बच्चों पर आश्रित न रहने का हवाला देकर प्रवेश चाहता है। अब वृद्धाश्रम में संतानों की मंजूरी के बिना प्रवेश नहीं दिया जाएगा। वृद्धाश्रम में पहले बुजुर्ग उन परिस्थितियों में जाते थे, जो एकाकी जीवन जी रहे हैं। अब ऐसे बुजुर्ग भी रहना चाहते हैं जिनका परिवार साथ रहता है, पत्नी भी जीवित है। छोटे-छोटे विवाद से नाराज होकर वे आश्रम में रहने का फैसला ले लेते हैं। इसके लिए वे विधायक और अफसरों की सिफारिशें तक लेकर आते हैं। आश्रम प्रबंधन का कहना है जिन बुजुर्गों को वाकई जरूरत है, उनके लिए प्रवेश की प्रक्रिया हमने आसान रखी है। जो सक्षम है और परिवार साथ रहता है, उनके लिए नियमों में थोड़ी सख्ती बरती जाती है।

केस-1 : ब्याज के बदले रहने की शर्त
72 वर्षीय भगवानदास सरकारी नौकरी में थे। अच्छी पेंशन मिलती है। वृद्धाश्रम में पांच लाख की एफडी लेकर आए, बोले रख लो। हर महीने के ब्याज के बदले रहने की शर्त रखी। जबकि बच्चे नहीं चाहते थे कि वे वृद्धाश्रम में रहें। आश्रम प्रबंधन ने उन्हें मना कर दिया।

केस-2 : पत्नी से आए दिन होती थी नोकझोंक
68 वर्षीय रमेश की पत्नी जीवित है और वे अपने बेटे-बहू के साथ रहती हैं। पत्नी से आए दिन होने वाली नोकझोंक के कारण रमेश पत्नी-बेटों के साथ नहीं रहना चाहते थे। आश्रम में एक महीने रहे, लेकिन प्रबंधन नहीं चाहता था कि परिवार टूटे। महीनेभर बाद उन्हें समझाकर परिवार के साथ रहने के लिए राजी किया।

केस-3 : घर में समय नहीं कटता था
बुजुर्ग रामचंद्र को परिजन से कोई परेशानी नहीं थी, लेकिन दिनभर घर में समय नहीं कटता था। आश्रम के कार्यों में हाथ बंटाने और वहां रहने की पेशकश की, लेकिन आश्रम की ओर से मना कर दिया गया। तर्क दिया गया कि आश्रम नाममात्र शुल्क पर उन बुजुर्गों को रखता है, जिन्हें वाकई मदद की जरूरत है और परिजन उनका ध्यान नहीं रखते।

संतान की मंजूरी जरूरी
वृद्धाश्रम में 60 वर्ष से अधिक उम्र के वरिष्ठ नागरिक रहना चाहते हैं, उनका फैसला प्रवेश समिति करती है। प्रवेश के लिए हमने संतानों की मंजूरी की शर्त भी रखी है। कई बार बेटे-बहू नहीं चाहते, फिर भी वृद्ध आश्रम में रहना चाहते हैं।
डीएस उपाध्याय, आस्था वृद्धजन सेवा आश्रम

तनाव और उपेक्षा है वजह
बच्चे बड़े हो जाते हैं तो उनकी प्राथमिकता उनका परिवार रहती है। बुजुर्ग माता-पिता परिवार में साथ रहकर भी अलग-थलग महसूस करते हैं और खुद को उपेक्षित महसूस करते हैं। कई बार वे इतने तनावग्रस्त हो जाते हैं कि साथ नहीं रहना चाहते हैं, जबकि संतान नहीं चाहती कि वे वृद्धाश्रम में रहें। अब ज्यादातर ऐसे केस आने लगे हैं। काउंसलिंग से कई ऐसे प्रकरण निपटाए जा रहे हैं।
डॉ. नितिन बी. शुक्ल, जिला सदस्य, वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण समिति

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