अध्यापकों को अब सितम्बर 2013 से पूरा 6वां वेतनमान चाहिए

अरविंद रावल। मध्यप्रदेश शासन द्वारा बार बार विसंगति भरे आदेश जारी करने से प्रदेश के साढ़े तीन लाख अध्यापक मानसिक रूप से बेहद परेशान है। प्रदेश शासन द्वारा सिर्फ अध्यापक संवर्ग के ही आदेश विसंगतिपूर्ण बार बार जारी होने शासन के उन जिम्मेदार अधिकारियों की योग्यता पर भी सवाल उठाता है जिनकी कलम से अध्यापक सवर्ग के आदेश बनते और जारी होते है। शासन में बैठे जिम्मेदार लोगों ने प्रदेश के अध्यापक संवर्ग को समाज के बीच मजाक बना कर रख दिया है। पिछले दो दशक से अध्यापक संवर्ग का कोई एक भी आदेश बिना सड़को पे संघर्ष किये शासन ने जारी नही किया है। 

इसे विडंबना कहे या फिर अध्यापको का दुर्भाग्य कि प्रदेश के अध्यापक अपने हक की मांगो के लिए सरकार से पहले सड़को पर आंदोलन करके लड़ते है। जब सरकार देने को राजी हो जाती है तो अफसरशाही अध्यापकों के आदेश में विसंगीतिया भर देती है। विसंगतियों को दूर करवाने के लिए अध्यापको को फिर सरकार की अफसरशाही से लड़ना पड़ता है। दुख तो इस बात का है कि जिस सीधी दो लाइन के आदेश से अध्यापक संवर्ग की व्याप्त विसंगतियो को खत्म किया जा सकता है वही दो लाइन का आदेश दो साल बीत जाने के बाद भी जारी नही हो पाता है तो जिम्मेदार अधिकारियों की उदासीन निरंकुशता ही कहा जायेगा। 

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान द्वारा 24 दिसम्बर 2015 को मध्यप्रदेश के अध्यापको को प्रदेश के नियमित कर्मचारियों के समान 1 जनवरी 2016 से छटे वेतनमान का लाभ देने की घोषणा की थी। मुख्यमंत्रीजी की घोषणा के बाद से प्रदेश शासन द्वारा अध्यापको के छटे वेतनमान देने के चार चार आदेश जारी हो चुके है किंतु अध्यापको की विसंगतिया अब भी व्याप्त है। शासन द्वारा अध्यापक संवर्ग के छटे वेतनमान के हर आदेश में विसंगतिया होना मानवीय भूल नही हो सकती है बल्कि यह जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा जानबूझकर सरकार को गुमराह कर अध्यापक सर्वग को प्रताड़ित कर मुख्यमंत्रीजी और प्रदेश सरकार की छवि को धूमिल करने का एक सोचा समझा षड्यन्त्र भी हो सकता है।

प्रदेश के अध्यापक संवर्ग को अब कोई उम्मीद नही दिखती है कि शासन स्तर से विसंगतिरहित आदेश जारी होंगे। प्रदेश के अध्यापको के कहने के 13 संघठन है लेकिन कोई एक भी संघ ऐसा नही है जो प्रदेश के अध्यापको की पीड़ा को मुख्यमंत्रीजी तक जस की तस पहुचा दे। आम अध्यापक मुख्यमंत्रीजी तक जा नही पाते किन्तु अध्यापको के नेता मुख्यमंत्रीजी तक जाते जरूर है लेकिन वे मुख्यमंत्रीजी के साथ फोटो खिंचवाने की उधेड़बुन में अध्यापको के दर्द को मुख्यमंत्रीजी से बया करने का उन्हें वक्त नही मिलता है। 

विसंगतियों से त्रस्त होकर अब प्रदेश के लाखों अध्यापक न्यायालय की शरण मे जाने का विचार कर रहे है। प्रदेश के लाखों अध्यापको की एकमात्र उम्मीद की किरण अब सिर्फ न्यायालय ही है । देश प्रदेश की न्यायव्यवस्था के आसरे ही अब प्रदेश के अध्यापक  1 जनवरी 2016 की बजाय सितम्बर 2013 से पूरा छटा वेतनमान प्राप्त करने का मूड बना चुके है। प्रदेश के हर जिले से सेकड़ो अध्यापक सितम्बर अक्टूम्बर में विसंगतियुक्त प्राप्त छटे वेतनमान का निर्धारण पत्रक अपने अपने डीडीओ से प्राप्त कर न्यायालय जाने की तैयारी कर रहे है। 

विशेष नोट: मध्यप्रदेश के सक्रिय अध्यापक साथियों से निवेदन है, कृपया सोशल मीडिया से कॉपी पेस्ट करके प्रकाशन हेतु कोई सामग्री ना भेजें। अपने लेख तथ्य एवं तर्कों के साथ प्रस्तुत करें। यदि कोई न्यूज या विचार प्रकाशित नहीं हो पाता तो निराश ना हों। अध्ययन करें कि किस तरह के विषय प्रकाशन के लिए चयनित किए जा रहे हैं। 

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