
क्या है मामला
शासन ने मनरेगा के तहत कार्यों को सूचारू रूप संचालित करने के लिये संबंधित अधिकारियों को वाहन सुविधा उपलब्ध कराई थी। वाहन किराये से लिये जाते थे। इसी तारतम्य में जिला पंचायत में मनरेगा के जिला कार्यक्रम समन्वयक एवं तत्कालीन कलेक्टर डॉ.नवनीत मोहन कोठारी को 4 वाहन उपलब्ध कराये थे। जिसका उपयोग मनरेगा के कार्यो में किया जाना था। बकायदा वाहन की लॉगबुक संधारित करना था परंतु आबंटित वाहनों का दुरूपयोग किये जाने की जानकारी मिली। इसी सूचना की पुष्टि के लिए सूचना के अधिकार के तहत आवेदक पत्रकार अशोक मोटवानी बालाघाट ने एक आवेदन 26 जुलाई 2010 को कार्यलय कलेक्टर उपरोक्त वाहनों की लॉगबुक की छायाप्रति मांगी थी जिसे 30 दिन के अंदर उपलब्ध कराया जाना था लेकिन संबंधित लोकसूचना अधिकारी ने ना समय पर जानकारी दी और ना ही कोई पत्रव्यवहार दिया।
इन विसंगतियों से व्यथित होकर आवेदक ने 7 सितंबर 2010 को कलेक्टर एवं प्रथम अपीलिय अधिकारी से अधिनियम की धारा 19(1) के तहत अपील करते हुये वाछित जानकारी निःशुल्क दिलाये जाने का आवेदन किया परन्तु प्रथम अपील पर भी कोई कार्यवाही नही की गई। इससे परेशान होकर आवेदक 9 नवंबर 2010 को राज्य सूचना आयोग को द्वितीय अपील करते हुए दोषी अधिकारी पर कार्यवाही करने एवं वाछित जानकारी दिलाये जाने का अनुरोध किया।
इस द्वितीय अपील को लेकर आयोग ने लगभग 3 वर्षो तक कार्यलय कलेक्टर एवं कार्यलय जिला पंचायत के लोक सूचना अधिकारियों को नोटिस जारी किये लेकिन कोई संतोषजनक जवाब आयोग को नही मिलने से आयोग ने सख्ती दिखाते हुये कमिश्नर जबलपुर संभाग को पूरे प्रकरण की जानकारी देते हुये कार्यवाही करने के निर्देश दिये।
आवेदक ने अपील निराकरण में हो रही देरी को लेकर आयोग से निवेदन किया। तब कही जाकर 30 मई 2017 को अंतिम सुनवाई हुई जिसमें दोनों पक्ष उपस्थित हुये तत्कालीन कलेक्टर एवं प्रथम अपीलिय अधिकारी डॉ.नवनीत मोहन कोठारी अपने जवाब में गलत जानकारी आयोग को दी। आयेाग ने डा. नवनीत मोहन कोठारी द्वारा प्रस्तुत जवाब को संतोषजनक ना मानते हुये तथा अपील की कुल अवधि 6 साल 10 माह तक आवेदक को जानकारी उपलब्ध ना कराये जाने का दोषी मनाते हुये अधिकतम शास्ति 25 हजार रूपये अधिरोपित किया जिसे 1 माह के भीतर आयोग में जमा कर आयोग को पालन प्रतिवेदन प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है अन्यथा वसूली की कार्यवाही की जायेगी।
यह उल्लेखनीय है कि कलेक्टर डॉ.कोठारी 14 अप्रैल 2009 से 15 अप्रैल 2011 तक बालाघाट रहे। मध्यप्रदेश में किसी आईएएस अफसर पर पहली बार सूचना आयोग ने इतनी बडी पैनाल्टी अधिरोपित की है। आवेदक अशोक मोटवानी ने अवगत कराया की कमिशनर कार्यालय से भी गोलमोल जवाब दिया गया। इसके बाद सख्ती दिखाते हुये सभी संबंधित अधिकारियों को 25-25 हजार रूपये शास्ति आरोपित करने का पत्र लिखकर आगामी पेशी में उपस्थित होने के आदेश जारी किये थे जिस पर संबधित अधिकारी उपस्थित तो हुये लेकिन जवाब प्रस्तुत करने लिये समय मांगते रहेे इस तरह द्वितीय अपील आवेदन के निराकरण में 6 वर्ष बीत गये।