भोपाल। चुनाव आयोग द्वारा दतिया विधायक एवं मंत्री नरोत्तम मिश्रा को आयोग्य घोषित किया गया। मिश्रा ने दावा किया कि यह अधिकार आयोग के पास है ही नहीं। केवल राज्यपाल ही ऐसे मामले में विधायक की सदस्यता समाप्त कर सकते हैं। अब राजभवन ने आधिकारिक बयान जारी करके कहा है कि इस मामले में हमारी कोई भूमिका नहीं है। जो करना है, विधानसभा अध्यक्ष को करना है।
पेड न्यूज के मामले में दोषी पाए गए नरोत्तम मिश्रा चुनाव आयोग को शुरू से चुनौती देते रहे हैं। 2008 में हुई शिकायत का फैसला टालने के लिए मिश्रा ने सुप्रीम कोर्ट तक दरवाजा खटखटाया। कानूनी प्रक्रियाओं का फायदा उठाते हुए उन्होंने मामले को 2017 तक खींचा। इस बीच 2013 का विधानसभा चुनाव लड़ा और दोबारा मंत्री भी बने। फाइनली जब चुनाव आयोग ने फैसला दिया तो उसे भी गलत घोषित कर दिया। दावा किया कि यह अधिकार केवल राज्यपाल के पास है। इधर हाईकोर्ट में स्टे की अपील भी कर दी। ग्वालियर से जबलपुर होते हुए मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा और वहां से फैसले के लिए दिल्ली हाईकोर्ट। यहां नरोत्तम की अपील खारिज हो गई।
इधर शुक्रवार को राजभवन ने साफ कर दिया कि नरोत्तम की सदस्यता निरस्त करने का फैसला विधानसभा अध्यक्ष करेंगे। राजभवन के प्रेस सेक्रेट्री राजेंद्र सिंह राजपूत ने कहा कि इस पूरे मामले में राजभवन की भूमिका कहीं नहीं है। यदि नरोत्तम मिश्रा इस्तीफा देते हैं तो राज्यपाल की भूमिका होगी। पेड न्यूज मामले को लेकर नरोत्तम मिश्रा को लेकर चल रहे घटनाक्रम पर पहली बार राजभवन की तरफ से अधिकृत बयान आया है।
विधानसभा अध्यक्ष का बयान भी बदला
अब तक विधानसभा अध्यक्ष सीताशरण शर्मा भी नरोत्तम मिश्रा के बयान को दोहरा रहे थे परंतु अब उनका बयान भी बदल गया है। उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 192 के तहत विधायक की सदस्यता निरस्त करने का अधिकार राज्यपाल को ही है। हालांकि परिस्थितियां बदली हैं। हाईकोर्ट के आदेश का अध्ययन करने के बाद ही अब मैं इस बारे में कोई टिप्पणी कर पाऊंगा।