
मायावती ने जब उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में 'दलितों पर अत्याचारों' का मुद्दा उठाया तो सदन में काफी हंगामा हुआ। मायावती ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के केंद्र में सत्ता में आने के बाद पूरे देश में, खासतौर पर भाजपा शासित राज्यों में 'जातिवाद और पूंजीवाद' बढ़ गया है। बसपा अध्यक्ष ने आरोप लगाया कि दलितों को निशाना बनाया जा रहा है। उन्होंने इस मुद्दे पर सदन से ध्यान देने को कहा।
किस काम के लिए मिला है जनादेश
इसके बाद नकवी ने कहा कि मायावती ने सदन का अपमान किया है और आसन को चुनौती दी है। उन्होंने कहा कि, "उन्हें (मायावती) माफी मांगनी चाहिए।" हंगामा न रुकता देख, उपसभापति पी.जे. कुरियन ने दोपहर तक के लिए सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी। विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने नकवी की टिप्पणी पर आपत्ति जताते हुए कहा कि बीजेपी को गरीबों, किसानों, अल्पसंख्यकों और दलितों की रक्षा के लिए जनादेश मिला है, न कि भीड़ द्वारा हिंसा (मॉब लिंचिंग) के लिए।
कांग्रेस ने किया वाकआउट
आजाद ने आक्रोश व्यक्त करते हुए कहा, "जब मायावती ने बोलने की कोशिश की, तब उनसे कहा गया कि 'हमें जनादेश मिला है।' हमें नहीं पता था कि बीजेपी को अल्पसंख्यकों, दलितों के खिलाफ मॉब लिंचिंग के लिए जनादेश मिला है। हम ऐसी सरकार के साथ नहीं हैं।" इसके बाद आजाद सदन से बाहर बहिगर्मन कर गए। अन्य कांग्रेस नेता भी उनके पीछे-पीछे सदन छोड़कर चले गए।
उपसभापति और मायावती में बहस
मायावती ने राज्यसभा में उत्तर प्रदेश में दलितों पर अत्याचार का मामला उठाया। जब वे इस मुद्दे पर बोल रही थीं तब सदन में काफी शोर-शराबा हो रहा था। जिसके बाद मायावती ने अपनी बात रखने की अपील की। राज्सभा के उपसभापति ने कहा कि आपको तीन मिनट ही बोलना है। इस दौरान उपसभापति ने उनसे कहा कि आपने तय समय में अपनी बात खत्म नहीं की। आपको बाद में फिर समय दिया जाएगा लेकिन वो बोलती रहीं। इस घटना से नाराज मायावती ने राज्यसभा से इस्तीफे की धमकी दी। उन्होंने आरोप लगाया कि मुझे इस मुद्दे पर बोलने नहीं दिया जा रहा। उन्होंने कहा कि आज वो इस्तीफा देंगी।
लोकसभा में किसानों पर हंगामा, स्थगित
जैसे ही अध्यक्ष ने प्रश्नकाल शुरू कराने का निर्देश दिया तो कांग्रेस, वाम दल, तृणमूल कांग्रेस समेत कुछ अन्य विपक्षी दलों के सदस्य अपनी मांगों के समर्थन में नारेबाजी करने लगे। कांग्रेस सदस्यों के हाथों में तख्तियां थीं, जिन पर लिखा था 'गौमाता तो बहाना है, कर्जमाफी से ध्यान हटाना है; कांग्रेस और वामदलों के सदस्यों को किसान संबंधी मुद्दे को उठाते हुए देखा गया। तृणमूल कांग्रेस के सदस्य भी कुछ कहना चाह रहे थे लेकिन भारी हंगामे के बीच उनकी बात सुनी नहीं जा सकी।