क्या उपराष्ट्रपति के दोनों उम्मीदवार स्वार्थ, दिखावे और आक्रमकता के खिलाफ नहीं हो सकते ?

राकेश दुबे@प्रतिदिन। जैसे संकेत मिल रहे हैं, सत्तारूढ़ एनडीए का उपराष्ट्रपति उम्मीदवार दक्षिण भारत से, हिंदूवादी नेता हो सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पसंद पर संघ ने मुहर लगा दी है। अब भाजपा की बैठक और अमित शाह द्वरा नाम की घोषणा बाकी है। दूसरी ओर विपक्ष ने संयुक्त रूप से गोपाल कृष्ण गांधी को उप राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार चुना है। श्री गाँधी को कांग्रेस सहित  विपक्ष के 18 दलों का समर्थन प्राप्त है। उन्हें उस जेडीयू ने भी अपना समर्थन दिया है, जिसने राष्ट्रपति पद के लिए सत्तापक्ष के साथ जाने का फैसला लिया था। इस बार विपक्ष ने अपना उम्मीदवार चुनने में सत्ता पक्ष से ज्यादा तत्परता दिखाई और सत्ता पक्ष को दबाव में ला दिया। एनडीए के घटक दलों में सबसे बड़ी पार्टी भाजपा है और उस पर प्रधानमंत्री का दबदबा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने पसंदीदा नाम पर संघ से मुहर लगवा चुके हैं, बाकी काम अमित शाह को करना है।

सत्तारूढ़ दल के उम्मीदवार की संख्या बल के हिसाब से जीत निश्चित है, श्री गोपाल कृष्ण गांधी का जीतना मुश्किल है। यह सर्व ज्ञात तथ्य है कि विपक्ष के लिए हमेशा ही राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति के चुनावों का प्रतीकात्मक या वैचारिक महत्व ज्यादा रहा है। हमेशा विपक्ष देश को यही एक संदेश देने की कोशिश करता है,वह संदेश इस बार भी जा रहा है, पूरे जोर से। इसके पीछे एक सोच काम करता है कि लोकतंत्र केवल बहुमत के मूल्यों से नहीं चलता। यह ठीक है कि व्यवस्था के संचालन संबंधी निर्णय बहुमत से ही लिए जाते हैं, मगर प्रजातान्त्रिक प्रणाली की सार्थकता इसी में है कि महत्वपूर्ण फैसलों में अल्पमत की आवाज भी शामिल हो। शायद, इसे ही ध्यान  में रखकर ही गोपाल कृष्ण गांधी को चुना गया है। वे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पोते हैं, लेकिन यह ज्यादा बड़ी बात नहीं। बड़ी बात यह है कि वे गांधीजी के मूल्यों और आदर्शों के प्रति समर्पित हैं। उन्होंने अपने जीवन में गांधीवाद को उतारा और उच्च पदों पर रहते हुए भी सादगी और सच्चाई के रास्ते पर चले। नंदीग्राम में हुए किसान आंदोलन के समय उन्होंने तत्कालीन वाम सरकार को आड़े हाथों लिया था। तब उन्होंने कहा था कि मैं अपनी शपथ के प्रति इतना ढीला रवैया नहीं अपना सकता, अपना दुख और पीड़ा मैं और अधिक नहीं छिपा सकता।

अपनी दो टूक राय व्यक्त करने वाले श्री गोपाल कृष्ण गाँधी ने कहा था कि गोरक्षा के नाम पर हो रही हत्या को किसी तरह से जायज नहीं ठहराया जा सकता। वे लोकपाल को लेकर सरकार के लचर व्यवहार पर कई बार सवाल उठा चुके हैं। ऐसे व्यक्ति को सामने रखकर विपक्षी दलों ने समाज में गांधीवादी मूल्यों की प्रासंगिकता को रेखांकित किया है। गांधी ने जीवन में सादगी और शुचिता की वकालत की थी। वे हमेशा आत्मसंयम को तरजीह देते थे और सभी प्राणियों के प्रति करुणा को मानव जीवन के लिए जरूरी मानते थे। वर्तमान समाज में स्वार्थ, दिखावा और आक्रामकता बढ़ रही है, तब गांधी के आदर्शों की सख्त जरूरत है। सत्तारूढ़ दल का उम्मीदवार कोई भी हो, जीत-हार अपनी जगह है, लेकिन यह संदेश, निकले तो बेहतर है कि दोनों उम्मीदवार समाज में बढ़ते स्वार्थ, दिखावे और आक्रमकता के खिलाफ है। और राष्ट्र का भला इसीमें है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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