
यों इस दिशा में पहल बेनामी लेन-देन निषेध कानून में संशोधन के साथ ही हो गई थी। संशोधित कानून पिछले साल एक नवंबर से लागू हो गया, जिसके तहत अधिकतम सात वर्ष की जेल और जुर्माने का प्रावधान है। पर सरकार के सामने पहली चुनौती नोटबंदी से पैदा हुई अफरातफरी से निपटना और बैंकों तथा बाजार के कामकाज को पटरी पर लाना था। इस चुनौती से पार पाते ही बेनामी संपत्ति सरकार के निशाने पर आ गई है। आय कर विभाग का दावा है कि उसने चार सौ से अधिक बेनामी सौदे पकड़े हैं और दो सौ चालीस मामलों में छह सौ करोड़ की संपत्ति जब्त की है। उसकी ताजा सक्रियता का प्रमाण उत्तर प्रदेश में डाले गए छापे हैं।कई वरिष्ठ अफसरों के यहां डाले गए छापों में करोड़ों की संदिग्ध संपत्तियों का पता चला है।
पहली ही नजर में यह सारी कमाई आय के स्रोत से बहुत अधिक मालूम पड़ती है। महंगे इलाकों में चार-पांच फ्लैट, फिर फार्महाउस, बेशकीमती भूखंड, गहनों के रूप में ढेर सारा सोना, बैंक लॉकर, ढेर सारी नगदी। ये सब जायज कमाई के लक्षण नहीं हो सकते। बहुत सारे मामलों में अवैध कमाई की एक सामान्य परिणति बेनामी संपत्ति के रूप में होती है| वरिष्ठ अधिकारियों को अपनी संपत्ति का विवरण देने का निर्देश कभी केंद्र सरकार की तरफ से तो कभी राज्य सरकार की तरफ से मिलता रहता है। पर अमल कितना होता है, यह उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के उदाहरण से जाहिर है जहां समय-सीमा कई बार बढ़ाए जाने के बावजूद बहुत कम अफसरों ने अपनी संपत्ति के बारे में सूचना दी। आनाकानी की वजह क्या रही होगी यह छापों से जाहिर है। सवाल है कि चौंधिया देने वाली यह अवैध कमाई आती कहां से है?
सरकारी योजनाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार और विभिन्न कामों के लिए होने वाले लेन-देन, सरकारी ठेके तथा सरकारी खरीद और अधीनस्थों की पदोन्नति व तबादले आदि नौकरशाहों के जाने-पहचाने चरागाह हैं। लिहाजा इन कामों की प्रक्रियाओं को पारदर्शी बनाने तथा जवाबदेही सुनिश्चित करने के पुख्ता तरीके सोचने होंगे।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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