
कई जगह देखा जाता है कि कर्मचारी अपने पिता के घर में रह रहा होता है और रेंट स्लिप लगा देता है। कभी-कभी किराएदार होने पर भी किराए की रकम बढ़ाकर दिखाई जाती है। इकॉनमिक टाइम्स की खबर के मुताबिक, आयकर अधिकारी अब दिखाई गई टैक्सेबल इनकम का आंकड़ा मंजूर करते वक्त सबूत मांग सकते हैं। इसमें लीज एंड लाइसेंस एग्रीमेंट, किराएदारी के बारे में हाउसिंग को-ऑपरेटिव सोसायटी को जानकारी देने वाला लेटर, बिजली का बिल और पानी का बिल जैसे सबूत हो सकते हैं।
डेलॉयट हास्किंस एंड सेल्स एलएलपी के सीनियर टैक्स अडवाइजर दिलीप लखानी ने बताया कि इनकम टैक्स अपीलेट ट्राइब्यूनल की रूलिंग ने सैलरी पाने वाले कर्मचारियों के क्लेम पर विचार करने और जरूरी होने पर उस पर सवाल करने के लिए आकलन अधिकारी के सामने एक मानक रख दिया है। इससे सैलरी लेने वाले पर यह जिम्मेदारी आएगी कि वह टैक्स छूट पाने के लिए नियमों का पालन करे। माना जाता है कि फर्जी रेंट रसीदें देने वाले कर्मचारी के पास इनमें से कोई भी जरूरी दस्तावेज नहीं होता है। हो सकता है कि वह व्यक्ति असल में किराये पर नहीं रह रहा हो। अपने परिवार के घर में ही रह रहा हो और अपने पिता से किराये की रसीद पर दस्तखत कराकर जमा कर रहा हो।
कुछ मामलों में असल में किरायेदार होने पर भी किराये की रकम बढ़ाकर दिखाई जाती है। इसमें तब तक दिक्कत नहीं आती जब तक कि किराया पाने वाला शख्स टैक्स चुकाने की लिमिट से बाहर हो। एक टैक्स ऑफिसर ने कहा, ‘टेक्नॉलजी और सख्त रिपोर्टिंग सिस्टम से नजर बनाए रखने में आसानी होगी।’ ऐसे कई मामले देखे गए हैं, जिनमें कोई व्यक्ति भले ही अलग रह रहा हो, लेकिन वह दावा करता है कि उसी शहर में रहने वाले एक रिश्तेदार को किराया चुका रहा है, जिनकी वहीं कोई प्रॉपर्टी हो।