
परिवहन मंत्री ने लोगों की असुविधा को देखते हुए रोडवेज कर्मचारियों से हड़ताल वापस लेने की अपील की है। उनका कहना है कि हड़ताल से पहले बातचीत करनी चाहिए थी। सरकार मांगें नहीं मानती तो फैसला ठीक था, लेकिन ऐसे चक्का जाम करना ठीक नहीं। एसीएस ढिल्लो ने कहा है कि चक्का जाम के बीच प्राइवेट बसों को सरकार की ओर से प्रोटेक्शन दिया जाएगा। इस संबंध में सभी डीसी, एसपी और रोडवेज महाप्रबंधकों को निर्देश दिए गए हैं।
हरियाणा रोडवेज कर्मचारी संघ के प्रदेशाध्यक्ष आजाद सिंह मलिक ने बताया कि निजी बसों को परमिट देने की शुरुआत 1993 में भजन लाल सरकार से हुई। उस समय 923 बसों को परमिट दिए थे। इसका बड़ा विरोध 2001 में हुआ। 13 और 14 नवंबर 2013 को प्रदेश में चक्का जाम करने पर हुड्डा सरकार ने भी 3,519 बसों को परमिट देने का अपना फैसला वापस लिया था। 2016 में रोडवेज कर्मचारी तीन बार हड़ताल पर जा चुके हैं। उधर, रोडवेज कर्मियों की हड़ताल को हरियाणा सर्व कर्मचारी संघ ने भी समर्थन दिया है।
परिवहन मंत्री का कहना है कि यह मामला वर्ष 1993 से चल रहा है। भाजपा सरकार ने एक भी नया परमिट नहीं दिया है। पुराने 273 रूट पर ही 850 निजी बसें चल रही हैं। यूनियन की जो भी उचित मांग होगी, सरकार उस पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करेगी। वहीं, एसीएस का कहना है कि जॉइंट एक्शन कमेटी के साथ बातचीत में स्पष्ट बताया गया है कि कौन सी बात मानी जा सकती है और कौन सी नहीं। मौजूदा परमिटों की संख्या भी पहले की तुलना में कम ही है।
रोडवेज कर्मचारी 273 रूटों पर जारी परमिटों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि वर्ष 1993 से 2013 के बीच जो भी रूट परमिट जारी किए गए थे, उन्हें हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था। इस तरह सरकार नई परिवहन नीति को नोटिफाइड किए बिना नए परमिट जारी नहीं कर सकती। जॉइंट एक्शन कमेटी के सदस्य दलबीर किरमारा, हरिनारायण शर्मा, अनूप सहरावत, रमेश सैनी और बाबूलाल यादव ने संयुक्त बयान में कहा कि सरकार बिना किसी पॉलिसी के निजी परमिट जारी कर विभाग और प्रदेश में अफरा-तफरी का माहौल पैदा कर रही है।