
स्मार्ट शहरों से शुरू हो रही इस स्कीम की सालाना लागत करीब 2,713 करोड़ रुपए आंकी जा रही है। इस स्कीम के जरिए शहरी गरीबी और अप्रवासी जनसंख्या को लाभ पहुंचााने की तैयारी है। इस योजना में किरायदार को सीधा किराया देने के बजाय वाउचर दिया जाएगा। इसके बाद मकानमालिक इस वाउचर को नागरिक सेवा केंद्र से नकद में बदल सकेगा। यदि, किराया वाउचर की कीमत से अधिक है, तो किरायदार को शेष किराया नकद में देने होगा।
वाउचर की कीमत हर शहर की स्थानीय निकाय खुद तय करेगी। इस आंकलन में लोगों के सामाजिक स्तर, शहर का किराया और लोगों की आय के मद्देनजर इसकी कीमत का आंकलन होगा। इसके अलावा सरकार गैस सब्सिडी की तरह ही डीबीटी यानी डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर पर भी विचार कर रही है। 2011 की जनगणना के अनुसार, 27.5 फीसदी शहरी आबादी किराए के घर में रहती है।