राम मंंदिर विवाद: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, जल्द सुनवाई नहीं होगी

नई दिल्ली। राम जन्मभूमि-बाबरी केस में सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को जल्द सुनवाई करने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि सुब्रमण्यम स्वामी मुख्य पक्षकार नहीं हैं। कोर्ट ने पिछली सुनवाई में कहा था कि इस मामले से जुड़े सभी पक्ष मिलकर बैठें और आम राय बनाएं। अगर इस मामले पर होने वाली बातचीत नाकाम रहती है तो हम दखल देंगे और इस मुद्दे का हल निकालने के लिए मीडिएटर अप्वाइंट करेंगे। 

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करने से मना कर दिया। बता दें कि सुब्रमण्यम स्वामी ने एक याचिका दायर कर रोज सुनवाई की अपील की थी। सुनवाई के वक्त स्वामी के अलावा इस केस से जुड़े दूसरे पक्षकार भी मौजूद थे, जिन्होंने स्वामी की याचिका पर आपत्ति जताई और कोर्ट को बताया कि ये केस से जुड़े पक्षकार नहीं हैं। न्यूज एजेंसी एएनआई के मुताबिक, कोर्ट ने स्वामी से पूछा कि क्या आप इस के पक्षकार हैं? फिलहाल हमारे पास आपको सुनने का वक्त नहीं है।

1) सरकार
- केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा ने कहा था, "राम मंदिर कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं है, बल्कि वह लाखों-करोड़ाें लोगों की आस्था का मामला है। यह बेहतरीन सलाह है। समस्या के समाधान के लिए इससे बेहतर परामर्श नहीं हो सकता था। केंद्रीय कानून राज्य मंत्री पीपी चौधरी बोले थे कि मामला दोनों पक्षों की सहमति से सुलझ जाए तो बेहतर है। इस पर सुप्रीम कोर्ट की ये पहल सराहनीय है। केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने कहा था, "सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हैं। उम्मीद है कि मसले का कोर्ट के बाहर हल निकल सकेगा।

2) पिटीशनर सुब्रमण्यम स्वामी
स्वामी ने ही इस मामले में जल्दी सुनवाई के लिए पिटीशन दायर की थी। उन्होंने कहा था- "हम हमेशा बातचीत को राजी थे। मंदिर और मस्जिद, दोनों बननी चाहिए लेकिन मस्जिद सरयू नदी के पार बननी चाहिए। राम जन्मभूमि पूरी तरह तरह से राम मंदिर के लिए होनी चाहिए। हम भगवान राम का जन्मस्थान नहीं बदल सकते, लेकिन मस्जिद हम कहीं भी बना सकते हैं। बता दें कि पिछले साल 26 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने ही स्वामी को इजाजत दी थी कि वे अयोध्या टाइटल विवाद से जुड़े मामलों में दखल दें। स्वामी ने इस मामले में खुद एक अर्जी दाखिल कर मंदिर बनाने की मांग की है।

3) विपक्ष
कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा था कि अगर दोनों पक्षों से जुड़े लोग आपसी रजामंदी वाला हल निकाल लेते हैं, तो इससे टिकाऊ अमन हासिल हो सकेगा और सभी पक्ष एक-दूसरे का सम्मान करेंगे। ऐसा नहीं होता है तो सुप्रीम कोर्ट को इस मुद्दे की मेरिट के आधार पर फैसला करना चाहिए। सीपीएम के सीताराम येचुरी ने कहा था, "मसला बातचीत से नहीं सुलझा, तभी कोर्ट गया था। असदुद्दीन ओवैसी ने कहा था, "सुप्रीम कोर्ट को इस मामले पर रोज सुनवाई करनी चाहिए। इस तरह से एक दिन फैसला आ जाएगा।

4) बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी
बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक और सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी ने कहा था कि मामला आगे बढ़ गया है। समझौते से हल नहीं निकलेगा। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस सीधे दखल दें, तो हो सकता है कि बात बन जाए।

बातचीत तो पहले ही नाकाम हो गईं 
1986 में तब के कांची कामकोटि के शंकराचार्य और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रेसिडेंट अली मियां नादवी के बीच बातचीत शुरू हुई थी, लेकिन नाकाम रही। 1990 में प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने (यूपी के सीएम मुलायम सिंह यादव) और (राजस्थान के सीएम) भैरों सिंह शेखावत के साथ मिलकर कोशिशें शुरू की, लेकिन उस वक्त भी नतीजा नहीं निकला। बाद में पीएम नरसिंह राव ने एक कमेटी बनाई और कांग्रेस नेता सुबोध कांत सहाय के जरिए कोशिशें आगे बढ़ीं, लेकिन 1992 में मस्जिद गिरा दी गई।''

5) हिंदू संगठन a) विहिप
विश्व हिंदू परिषद के चीफ प्रवीण तोगड़िया का कहना था कि केंद्र सरकार को राम मंदिर बनाने के लिए कानून बनाना चाहिए। विवादित भूमि भगवान राम की है और वहां भव्य राम मंदिर बनना चाहिए। विश्व हिंदू परिषद के त्रिलोकी पांडे ने कहा था कि रामजन्म भूमि आस्था और श्रद्धा का मामला है। इसका समाधान तभी हो सकता है, जब दूसरे पक्ष भी यह मान लें कि विवादित स्थल ही रामजन्म भूमि है। उन्होंने कहा कि 1949 से सुलह समझौते के कई दौर चले, लेकिन नतीजा सिफर रहा। इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व जज पलक बसु ने भी समझौते के प्रयास किए थे। इस मामले का हल कोर्ट से या संसद से कानून बनाकर निकाला जा सकता है। बहुसंख्यकों की इच्छा को सबसे ऊपर रखना ही होगा।

5) हिंदू संगठन b) निर्मोही अखाड़ा
निर्मोही अखाड़े के महंत रामदास ने कहा था, "सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला राम मंदिर विवाद को सुलझाने की नई कोशिश है। इसका स्वागत किया जाना चाहिए।"

5) हिंदू संगठन c) आरएसएस
आरएसएस के दत्तात्रेय होसबोले ने कहा था, "हम हमेशा से आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट के पक्ष में थे। यह मामला धर्मसंसद में सुलझाया जाएगा। इसमें वे सभी पार्टियां शामिल होंगी, जो कोर्ट गई थीं।

6) मुस्लिम संगठन
मुस्लिम धर्मगुरु उमर इलियासी ने कहा था, "ये मामला पुजारियों और मौलवियों के बीच का है। दोनों के बीच आपसी सहमति से ही हल होना चाहिए। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के मेंबर मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली ने कहा था, "सुप्रीम कोर्ट ने जो बात कही है, उसके बारे में मुस्लिम विद्वानों से बात करेंगे। बाबरी मस्जिद के मुद्दई हाजी महबूब ने कहा था- हम भी इस बात के पक्षधर थे कि दोनों पक्ष इस मामले में बैठ कर बातचीत करें।

क्या है हाईकोर्ट का फॉर्मूला और क्या है विवाद?
28 सितंबर 2010 को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहबाद हाईकोर्ट को इस विवादित मामले में फैसला देने से रोकने वाली पिटीशन खारिज कर दी थी, जिससे फैसले का रास्ता साफ हो गया। 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने विवादित 2.77 एकड़ की जमीन को मामले से जुड़े 3 पक्षों में बराबर-बराबर बांटने का आदेश दिया था।

कौन हैं 3 पक्ष, क्या था फॉर्मूला?
निर्मोही अखाड़ा: विवादित जमीन का एक-तिहाई हिस्सा यानी राम चबूतरा और सीता रसोई वाली जगह। रामलला विराजमान: एक-तिहाई हिस्सा यानी रामलला की मूर्ति वाली जगह। सुन्नी वक्फ बोर्ड: विवादित जमीन का बचा हुआ एक-तिहाई हिस्सा।

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