
मनोनयन के इस खेल में ऐसे सदस्यों को प्रश्रय मिल रहा है जिनकी व्यवसायिक समझ, प्रतिबद्धता और वांछनीय योग्यता ही संदेह के घेरे में है। इस संस्था के संचालन के लिए अधिनियम में चार श्रेणियों से चयन होता है। राज्य शासन के अधिकारीयों ने नियमों की अनदेखी कर डी ग्रुप की योग्यता रखने वालों का मनोनयन किया है। वह भी दो–तीन साल पूर्व किये गये मनोनयन को अब सार्वजनिक किया गया है। मध्यप्रदेश शासन के 31 जनवरी 2017 में प्रकाशित गजट की मनोनयन की सूची श्री प्रदीप कुमार चैारसिया एसोसियेटेड़ प्रोफेसर आफ फार्मेसी व्ही.एन.एस.काॅलेज को छोड़कर अन्य चारों फार्मेसिस्टों के ’डी’ ग्रुप में पंजीकृत है।
इसमें भी स्टेट फार्मेसी एसोसियेशन के किसी भी सदस्य को मनोनीत नहीं किया है। उल्लेखनीय है कि स्टेट फार्मेसी कौन्सिल मध्यप्रदेश में स्थाई रजिस्ट्रार के पद पर भी कोई पदस्थ नही है। सारा काकाज तदर्थ रूप से चल रहा है। न्यायालयीन निर्णयों का भी कोई असर नहीं है। भारतीय जनता पार्टी के एक पूर्व मंत्री के नजदीकी व्यक्ति के हाथ में इस काउन्सिल की कमान है।
चुनाव न हो इसका पुख्ता इंतजाम है। मध्यप्रदेश में अस्पताल और दवा की दुकाने जन संख्या के अनुपात में तेज़ी से खुल रही है। नये-नये फार्मूलों पर आधारित दवाएं बाज़ार में आ रही है। फार्मासिस्तों की भूमिका चिकित्सीय व्यवसाय की एक महत्वपूर्ण कड़ी है उसकी नियंत्रक संस्था के साथ हो रहा यह खेल किसी दिन महंगा पड़ेगा।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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