सुप्रीम कोर्ट ने शिवराज सरकार को फटकारा: विस्थापितों को जानवर मत समझो

NEW DELHI | विस्थापितों को मुआवजे में मनमानी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने शिवराज सरकार को जमकर डांट पिलाई है। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा है कि छोटे-छोटे बांधों के निर्माण की वजह से जो परिवार विस्थापित हुए हैं उन्हें 50 हजार रुपये के मुआवजे की जगह सिर्फ 11 हजार रुपये का मुआवजा क्यों दिया जा रहा है।

ऐडवोकेट संजय पारेख ने चीफ जस्टिस जे एस खेहर की अध्यक्षता वाली बेंच को बताया कि राहत और पुनर्वास के नाम पर किया जा रहा है इस तरह का भेदभाव पूरी तरह से अमानवीय है। खड़क बांध के सिंचाई प्रॉजेक्ट की वजह से करीब 370 परिवार बेघर हो गए और इन्हें राज्य सरकार की 2002 की पॉलिसी के तहत महज 11 हजार रुपये का मुआवजा दिया गया।

तो वहीं, मध्य प्रदेश सरकार की तरफ से ऐडवोकेट सी डी सिंह ने कहा, प्रभावित गांववाले जिनमें से अधिकतर आदिवासी हैं, जब ये लोग अपनी मांग को लेकर होई कोर्ट पहुंचे तो राज्य सरकार ने इस मामले में अपनी उत्सुकता दर्शाते हुए प्रभावित परिवारों को 50 हजार रुपये का मुआवजे देने की बात कही थी। सरकार ने 2008 की नई पुनर्वास नीति मध्य प्रदेश आदर्श पुनर्वास नीति के तहत यह मुआवजा देने की बात कही थी। यह रकम 18 जुलाई 2016 को हाई कोर्ट की ओर से दी जानी थी।

मध्य प्रदेश सरकार की ओर से बड़े और छोटे बांध की वजह से विस्थापित हुए लोगों के बीच भेदभाव करने की घटना पर जस्टिस खेहर, एन वी रमन्ना और डी वाई चंद्रचूड़ की बेंट ने कहा, 'आप उनके साथ जानवरों जैसा सलूक कर रहे हैं। आपको उन्हें उचित मुआवजा देना चाहिए।' बेंच ने आदेश दिया कि प्रभावित परिवारों को तुरंत 50 हजार रुपये का मुआवजा दिया जाए।

उचित मुआवजा और पुनर्वास को लेकर उनके साथ हुए अन्याय के मामले में पीड़ित परिवार जागृत आदिवासी दलित संगठन के बैनर तले सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे। ये सभी परिवार खरगौन और बरवानी जिले के रहने वाले हैं। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने मध्य प्रदेश सरकार को आदेश दिया कि बांध की वजह से विस्थापित हुए परिवारों को राहत और पुनर्वास पैकेज देने के लिए राज्य सरकार तुरंत प्रभाव से शिकायत निवारण के लिए 3 संस्थाओं की स्थापना करे। हर संस्था की अध्यक्षता एक सेवानिवृत्त जिला जज करेंगे।

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