100 मतदाताओं में से मात्र 7 करदाता: सच या सफेद झूठ

नई दिल्ली। मोदी सरकार पिछले कुछ दिनों से इनकम टैक्स के आंकड़ों को लेकर सवाल कर रही है। नोटबंदी के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने भी इस तरफ इशारा करते हुए एक आंकड़ा पेश किया था। आज संसद में पेश 2016-17 की आर्थिक समीक्षा के दौरान भी बताया गया कि भारत में 100 मतदाताओं में से मात्र 7 करदाता हैं। बड़ी ही चतुराई के साथ इनकम टैक्स में से इनकम शब्द को गायब करके दिखाया जा रहा है जबकि वास्तविकता यह है कि भारत में एक माचिस की डिबिया खरीदने वाला निर्धन नागरिक भी करदाता है। हां वो आयकर दाता नहीं है। 

मोदी सरकार ने संसद में पेश आंकड़ों के साथ दलील दी कि लोग टैक्स अदा नहीं करते इसलिए देश लोकतांत्रिक जी-20 देशों में 18 में से 13वें स्थान पर है। यह आंकड़े संसद में आज पेश 2016-17 की आर्थिक समीक्षा में ‘भारत के बारे में आठ दिलचस्प तथ्य’ शीषर्क वाली एक विशेष प्रस्तुति में कहा गया है, ‘‘देश में राजनीतिक लोकतंत्र तो है लेकिन राजकोषीय लोकतंत्र नहीं है?’’ 

विदेशों से अपनी तुलना करते हुए सरकार ने कहा कि नार्वे में 100 मतदाताओं पर 100 करदाता हैं और इस मामले में वह पहले स्थान पर है। उसके बाद क्रमश: स्वीडन, कनाडा, नीदरलैंड, आस्ट्रेलिया का स्थान है। वहीं ब्रिक्स देशों में जहां ब्राजील भारत से आगे जबकि रूस पीछे है।

बता दें कि भारत का प्रत्येक नागरिक जो आयकर रिटर्न नहीं भरता, दर्जनों तरह के टैक्स अदा करता है। सरकार जिन गरीबों को मुफ्त में गेंहू, चावल और राशन देती है, कई वस्तुओं पर उनसे भी टैक्स वसूलती है। भारत में महंगाई का प्रमुख कारण ही पेट्रोलियम पदार्थों में अत्याधिक सरकारी टैक्स हैं। जहां दुबई जैसे छोटे से देश अपने नागरिकों से कोई टैक्स नहीं वसूलते। भारत जैसा विशाल और प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध देश प्रत्येक नागरिक पर दर्जनों टैक्स लगता है। यहां उन चीजों पर भी टैक्स वसूला जाता है जिन पर सरकार ने सब्सिडी दी हुई है। रसोई गैस इसका प्रमुख उदाहरण है। 
भारत का एक निर्धन नागरिक जिसे सरकार मुफ्त राशन देती है वो भी कुल कितने तरह के इंडायरेक्ट टैक्स अदा करता है, लिस्ट विकी पीडिया पर देखने के लिए यहां क्लिक करें

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