
अंडमान द्वीप समूह में फंसे पर्यटकों को भी तमाम कठिनाइयों के बीच काफी पहले ही निकाल लिया गया। हालांकि जो खबरें आ रही हैं, वे तूफान की जद में पड़ने वाले बड़े शहरों की ही हैं। अभी यह ठीक से नहीं पता कि इस क्षेत्र में तटों के पास मछुआरों के जो गांव हैं, उनकी क्या स्थिति है? ऐसे में, सबसे कठिन काम उन मछुआरों को पहले ही रोकना या वापस लाना होता है, जो गहरे समुद्र में जाकर मछलियां पकड़ते हैं। ऐसे मछुआरे ही चक्रवाती तूफान का सबसे अधिक शिकार बनते हैं। इसके अलावा तटों पर बसी उनकी बस्तियां भी अक्सर ऐसे तूफानों से उजड़ जाती हैं।
1999 में ओडिशा के तट से टकराने वाले समुद्री चक्रवात के बाद से चीजें काफी बदली हैं। पारदीप नाम का वह चक्रवात दरअसल एक सुपर साईक्लोन था। वरदा और पारदीप का फर्क इससे समझा जा सकता है कि सोमवार को जब वरदा भारतीय तट से टकराया, तो उसकी गति 150 किलोमीटर प्रति घंटा थी, जबकि पारदीप की गति 260 किलोमीटर प्रति घंटा थी। पारदीप तूफान की चपेट में आने से लगभग दो हजार लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था।
इसके चलते तब लगभग 17 लाख लोग बेघर हो गए थे। फसलों और इमारतों को जो नुकसान हुआ था, वह अलग था। उसके कुछ ही वर्ष बाद आए सुनामी ने भी यह बता दिया था कि तटों की सुरक्षा को गंभीरता से लेना कितना जरूरी है। इसके बाद से सुरक्षा के लिए काफी व्यवस्थाएं की गई हैं। वरदा के टकराने के बाद इन व्यवस्थाओं की परीक्षा भी हो जाएगी। यह ठीक है कि इस बार भी बहुत से पेड़ गिरेंगे, बहुत से इलाकों की फसलें बरबाद होंगी, लेकिन अगर जानमाल के नुकसान को कमहुआ, तो यह व्यवस्था की बहुत बड़ी कामयाबी होगी।
चक्रवाती तूफान एक प्राकृतिक आपदा है और ऐसी आपदाओं को रोकना संभव नहीं होता। हालांकि दुनिया के कई वैज्ञानिक इस समय एक ऐसा प्रयोग भी कर रहे हैं कि किसी तरह समुद्री चक्रवात को तट से टकराने के काफी पहले ही प्रभावहीन किया जा सके। यह माना जाता है कि अगर किसी तरह चक्रवात की नाभि को तोड़ा जा सके, तो उसे खत्म किया जा सकता है। कुछ वैज्ञानिक इसके लिए बिना पायलट वाला विमान इस्तेमाल करने की योजना बना रहे हैं। पता नहीं है कि यह प्रयोग कब सफल होगा, पर फिलहाल दुनिया के तकरीबन सभी देशों को आए दिन ऐसी आपदा से दो-चार होना पड़ता है। सब जगह ऐसे तूफानों के नुकसान को कम करने का एक ही तरीका होता है, सुरक्षा की ऐसी भरोसेमंद प्रणाली विकसित करना, जो तटवर्ती इलाके की हर बस्ती, हर व्यक्ति तक पहुंचती हो।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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