
अविवाहित थीं इसलिए
अयंगार ब्राह्मण समुदाय से आने की वजह से जिस महिला की शादी नहीं होती है, उन्हें दफनाया जाता है। हालांकि, कुछ लोगों का कहना है कि जयललिता किसी धर्म और जाति में यकीन नहीं करती थीं। इसलिए वो अपनी पहचान उन नेताओं की ही तरह बनाए रहना चाहती थीं, जैसी पहचान पेरियार, अन्नादुरई और एमजीआर ने बनाई थी। इन नेताओं को भी दफनाया गया था।
द्रविड़ आंदोलन की नेता थीं इसलिए
दूसरी दलील यह दी जा रही है कि द्रविड़ आंदोलन मूलतः ब्राह्मणों के विरोध में खड़ा किया गया था। उन्हें ईश्वर और उनके प्रतीकों में विश्वास नहीं है। इसलिए इस आंदोलन से निकले हुए नेता उस परंपरा का विरोध कर दफनाने की परंपरा में यकीन रखते हैं।
समाधि बनाई गई इसलिए
तीसरा तर्क ये है कि जयललिता ये चाहती थीं कि उनके निधन के बाद उनका समाधि स्थल उनके समर्थकों के लिए एक तीर्थ जैसा बन जाए। उनके जन्म और पुण्यतिथि पर लोग आकर उन्हें याद करें।
वैष्णव परंपरा के तहत निभाईं गईं रस्में
हालांकि कुछ चैनलों ने ये भी खबर चलाई है कि जयललिता को दफनाने से पहले जितनी भी रस्में निभाई गईं, वो सभी वैष्णव परंपरा की ही तरह थीं। सभी रस्में उनकी सहेली शशिकला ने पूरी कीं। इसका ये भी अर्थ लगाया जा रहा है कि जयललिता की असली वारिस शशिकला ही होंगी, ये संदेश उन्होंने साफ तौर पर दिया।