संभल जाइए शिवराज, वरना थेटे जैसे अफसर ब्लैकमेल करते रहेंगे: सपाक्स

भोपाल। कल दिनांक 7.12.2016 को पदोन्नति में आरक्षण प्रकरण में माननीय सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई होना है। शासन एवं अजाक्स द्वारा सुनवाई में बाधा उत्पन्न करने के अभी तक निरन्तर प्रयास किये जाते रहे हैं। फलस्वरूप सामान्य पिछडा अल्प संख्यक वर्ग के हजारों अधिकारी/कर्मचारी बिना पदोन्नति प्राप्त किये ही सेवानिवृत हो चुके हैं।

माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर में लम्बे संघर्ष के बाद म.प्र. पदोन्नति 2002 असंवैधानिक ठहराये जाने के बाद भी उक्त निर्णय को म.प्र. सरकार द्वारा लागू न करते हुये माननीय सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गइ। फलस्वरूप वर्षो अन्याय से प्रताडित सामान्य पिछडा अल्प संख्यक वर्ग के अधिकारी/कर्मचारी अपने पक्ष में निर्णय के बावजूद न सिर्फ अभी तक न्याय से वंचित है बल्कि शासन की उक्त कार्यवाही से मप्र जैसे शान्ति पूर्ण राज्य में अनावश्यक वर्ग संघर्ष की स्थितियां उत्पन्न हो चुकी हैं।

सामान्य पिछडा अल्प संख्यक वर्ग के अधिकारी/कर्मचारी न सिर्फ पीडित हैं बल्कि असंवैधानिक रूप से उच्च पदों पर पदस्थ आरक्षित वर्ग के अधिकारी कर्मचारियों की गोपनीय प्रतिवेदनों में दुर्भावनावश प्रतिकूल टीप दर्ज कर रहे हैं जिसके संबंध में शासन जानते समझते हुये भी अंजान बना हुआ है। प्रताडना की सीमा यहां तक पहुंच चुकी है कि कई जिलों में अधिकारी कर्मचारियों के विरूद्व अजाक्स वर्ग के शासकीय सेवकों द्वारा अत्याचार निवारण अधिनियम का दुरूपयोग करते हुये दुर्भावनावश प्रकरण दर्ज कराये जा रहे हैं।

यहां तक की इस प्रकार की गतिविधियों से अब प्रशासनिक अधिकारी भी अछूते नहीं रहे। आज पूरे प्रचार-प्रसार के साथ प्रदेश के कर्मठ आई.ए.एस. अधिकारी अतिरिक्त मुख्य सचिव श्री आर.एस जुलानियां के विरूद्व सचिव श्री रमेश थेटे द्वारा अजाक्स थाने में अत्याचार निवारण अधिनियम के अंतर्गत एफ.आई.आर. दर्ज करने हेतु भोपाल शहर में आवेदन दिया गया है। जब शासन की नाक के नीचे भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे श्री थेटे जैसे वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी अपने आपको दलित बताते हुए ऐसी घृणित कार्यवाही कर सकते हैं तो इस अधिनियम का सामान्य जनों के विरूद्व किस तरह का दुरूपयोग किया जा रहा होगा यह स्वतः स्पष्ट है। 

सपाक्स संगठन इस तरह की गतिविधि की पूर्ण भर्त्सना करता है। उक्त घटना से यह भी स्पष्ट है कि आरक्षण के लाभों से वरिष्ठ पदों पर पहुंचे व्यक्ति सिर्फ और सिर्फ अपने हितों को साधने मात्र के लिये ऐसे नियमों को बनाये रखना चाहते है एवं शासन स्वयं भी भ्रमित होकर ऐसे नियमों के पक्ष में है जिससे वास्तविक शोषित/वंचित दलित कभी भी आरक्षण का वास्तविक लाभ नहीं ले पा रहे हैं। यह अपने आप में हास्यापद है कि शासन का महत्वपूर्ण अंग होने के बावजूद स्वयं को दलित कहकर इस शब्द के अर्थ को ही बदला जा रहा है?

अभी भी समय है कि सरकार शासकीय सेवा में जातिगत भेदभाव समाप्त कर सभी वर्गो से समभाव रखें वरना श्री थेटे जैसे भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अपने आपको दलित बताकर सरकार को ब्लैकमेल करते रहेगें।
सचिव/मीडिया प्रभारी
सपाक्स
9893093824

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