सिमी कांड: जिसे सबक होना था, विवाद हो गया

भोपाल जेल में कल रात घटी घटना सबक की जगह विवाद हो गई है। हद तो यह है  की एक समय सिमी को प्रतिबंधित करने का आदेश देने वाले अब उन लोगो के पक्ष में खड़े हैं। जो सिमी के माध्यम से आतंक को अपना धर्म मान चुके हैं। मरने वालो 8 के अलावा 21 और भोपाल की इस लकवाग्रस्त जेल में बंद हैं।

लोकतंत्र, संविधान और धर्मनिरपेक्षता को इस्लाम के खिलाफ और जिहाद को अपना रास्ता मानने वाला सिमी शुरू से एक कट्टर पंथी संगठन था, पर धीरे-धीरे वहीं तक सीमित न रह कर आतंकवादी गुटों खासकर इंडियन मुजाहिदीन से नाता जोड़ बैठा। यही नहीं, खुद सिमी के लोग कई वारदातों के सिलसिले में पकड़े गए। अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड टॉवर पर आतंकी हमले के कुछ ही दिन बाद सितंबर 2001 में सिमी पर प्रतिबंध लगा। मध्य प्रदेश में भी 2003 में प्रतिबन्ध लगा। तब से एक बार कुछ दिनों के अपवाद को छोड़ कर उस पर लगी पाबंदी कायम रही है। उस पर लगे प्रतिबंध को सर्वोच्च अदालत ने भी सही ठहराया था और एक विशेष न्यायाधिकरण ने भी।

आश्चर्य यह है की इतनी गलत अवधारणा रखने वाले सन्गठन की हिमायत में कुछ लोग खड़े  ही नहीं हुए, बल्कि उस हद तक हिमायत कर रहे हैं कि वकालत भी शर्मा जाये। अपराधियों की यह हिमायत तो सरासर उन नागरिको का अपमान है, जिन्हें इस दुर्दांत सन्गठन ने बेमौत मारा है। जेल की अव्यवस्था, पुलिस की कार्रवाई में कमीबेशी रोष का कारण हो सकती है, पर सिर्फ विरोध करने के लिए कुछ भी कहना अनुचित है। जाँच के विषय की व्यापकता और उसे वापस लपेटने से पहले शिवराज सरकार को भी यह साफ़ करना चाहिए किस आदेश निर्देश और सलाह पर ये सब आरोपी एक साथ  भोपाल जेल लाये गये थे। 

मध्यप्रदेश के गृह मंत्री ने एनआईए के जाँच बिन्दुओं को सीमित किया है। इसका कारण भी राजनीतिक है। भोपाल जेल की यह घटना सारे जेल प्रशासन के लिए सबक बननी चाहिये थी। अब विवाद बन गई है और उन लोगो की मौज हो गई है, जो जेल में प्रशासन के नाम पर अपराध जगत से  दुरूह संधि करते थे, करते हैं और करते रहेंगे।

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