भोपाल एनकाउंटर: ये रहे सभी सवालों के सच्चे जवाब

भोपाल। दीपावली की रात फरार हुए और सुबह एनकाउंटर में मारे गए आतंकवादियों की वारदात को लेकर काफी सारे सवाल उठाए जा रहे हैं। सवाल ऐसे हैं जिनके जवाब संवैधानिक या प्रशासनिक पद पर बैठा कोई व्यक्ति दे ही नहीं सकता परंतु सच यही है कि आतंकवादी जेल से मौका पाते ही फरार हुए थे, उन्हें फरार कराया नहीं गया। उनकी लोकेशन मिलते ही घेराबंदी करके फायरिंग की गई। यह फायरिंग उन्हें मारने के लिए ही की गई थी। मप्र में ऐसा ही होता आया है। डाकुओं के मामलों में भी और इस बार आतंकवादियों के मामले में। पढ़िए मीडिया के सवाल और उनके सच्चे जवाब। 

1. भोपाल जेल की क्षमता 1500 कैदियों की है लेकिन इस समय जेल में करीब 3500 कैदी बंद हैं. सूबे के पूर्व डीजी ने भोपाल जेल की सुरक्षा को भगवान भरोसे बताया था. बावजूद इसके राज्य सरकार ने जेल की सुरक्षा को लेकर जरूरी कदम क्यों नहीं उठाए? जेल प्रशासन ने सिमी आतंकियों की सुरक्षा बढ़ाने की मांग की थी लेकिन प्रदेश सरकार ने अफसरों की चिट्ठी को नजरअंदाज क्यों किया?
जवाब: पूरे देश की जेलों के हालात ऐसे ही हैं। जेल प्रशासन आए दिन चिट्ठियां लिखकर बजट मांगता रहता है। सरकार हर चिट्ठी को गंभीरता से नहीं लेती। यदि विषय गंभीर होता तो जेल डीजी खुद डीजीपी के साथ सीएम से मिलने पहुंच गए होते। सरकार शक के दायरे में नहीं है। 

2. भोपाल जेल में बंद सिमी के आतंकियों की निगरानी के लिए लगे चारों सीसीटीवी कैमरे खराब निकले हैं। जबकि पूरे जेल परिसर में 42 सीसीटीवी कैमरे लगे हैं। बताया जा रहा है कि ये चार कैमरे करीब डेढ़ महीने से बंद पड़े हैं जो सिमी के 8 आतंकियों पर नजर रखने के लिए लगाए गए थे। 
जवाब: ऐसी लापरवाहियां मप्र की जेलों में अक्सर देखने को मिलती हैं। जेलर बजट मांगता है। अफसर पास नहीं करते। उन्हे लगता है जेलर हजम करने के लिए बजट मांग रहा है। इस केस में भी ऐसा ही हुआ है। अभी भी मप्र में सुरक्षा के लिए बेहद जरूरी सैंकड़ों सीसीटीवी कैमरे खराब पड़े हुए हैं। बात अकेले एक जेल की नहीं है। ऐसी लापरवाही मप्र की अफसरशाही के कल्चर में है। 

3. एनकाउंटर में मारे गए आतंकियों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई है। इसके मुताबिक मारे गए आतंकियों की कमर से ऊपर चोट के निशान मिले हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि अगर एनकाउंटर दूर से हुआ था तो फिर गोलियां शरीर के बाकी हिस्सों या कमरे के निचले हिस्सों पर क्यों नहीं लगी? तस्वीरों में साफ है कि पहाड़ी पर आठों निहत्थे खड़े थे। फिर उन्हें जिंदा पकड़ने की कोशिश क्यों नहीं की गई?
जवाब: आतंकवादी थे, कोई जेबकतरे नहीं थे। भागने से पहले एक गार्ड की हत्या कर चुके थे। यदि अचानक हथियार निकाल लेते और पुलिस पर फायरिंग या बमबारी कर देते तो...। चांस नहीं लिया जा सकता था। इसलिए घेरकर फायरिंग की गई। फायरिंग उन्हें मारने के लिए ही की गई थी। टारगेट अचीव भी हुआ। 

4. बताया जाता है कि आतंकी आधी रात के आसपास जेल से भागे थे। जेल के बाहर आने पर इन आतंकियों की किसी ने मदद भी की क्योंकि इनके कपड़े बदले हुए थे और इनके पास हथि‍यार भी थे। जेल से भागने के 8 घंटे के भीतर ये आतंकी मुठभेड़ में मारे गए। जिस जगह पर ये आतंकी मारे गए, वो जगह भोपाल जेल से 10 किलोमीटर की दूरी पर है। ऐसे में यह सवाल भी उठता है कि जब इन आतंकियों का कोई मददगार भी था तो भी ये 8 घंटे में 10 किलोमीटर से ज्यादा दूर क्यों नहीं भाग पाए? अगर उन्हें हथियार देने कोई जेल के बाहर आया था तो फिर उसने भागने के लिए गाड़ी क्यों नहीं दी? जबकि पैदल भागने में पकड़े जाने का ज्यादा खतरा था? जेल तोड़ने के बाद आठों आतंकी एक साथ एक ही रास्ते पर क्यों भागे? जबकि इसमें पकड़े जाने का सबसे ज्यादा खतरा था?
जवाब: कपड़े बाहर आकर नहीं बदले। जेल में भी इन्हीं कपड़ों में रहा करते थे। थोड़ी सी रिश्वत के बदले भोपाल की सेट्रल जेल में काफी सारी सुविधाएं मिल जातीं हैं। इनके दूसरे साथी जो अभी भी जेल में हैं, जांच के दौरान जींस, टीशर्ट और बहुत सारे ड्रायफ्रूट्स के साथ आराम करते मिले हैं। आतंकवादी जान बूझकर दूर तक नहीं भागे, क्योंकि उन्हें पता था कि नाकाबंदी हो गई होगी। आसपास कोई नहीं देखेगा, लेकिन उनका अनुमान गलत निकला। आतंकवादियों के पास ना तो भागते समय कोई हथियार थे और ना ही एनकाउंटर के समय। यह तो केवल एक अनुमान था जो अफवाह बन गई। 

5. जेल से भागने के बाद उनके पास चार कट्टे कहां से आए? जेल के बाहर उन्हें कट्टे किसने दिए? पुलिस का दावा है कि आठों विचाराधीन आतंकवादी भी गोलियां चला रहे थे। ऐसी सूरत में गोलियों से बचने की बजाए पुलिस वाले फोन पर वीडियो कैसे शूट कर रहे थे?
जवाब: मप्र पुलिस लगभग हर मूवमेंट की मोबाइल से वीडियो रिकॉर्डिंग करती है। उनके पास कोई हथियार नहीं थे। मारने के बाद कहानी को कानून के दायरे में लाने के लिए कट्टों को प्लांट किया गया। 

6. आमतौर पर जेल के अंदर 70 सुरक्षाकर्मियों की तैनाती रहती है। जेल मैनुअल को ताक पर रख कर और जेल की सुरक्षा को खतरे में डाल कर दीवाली की रात जेल के 30 स्टाफ भी दीवाली मना रहे थे. यानी दीवाली की रात भोपाल सेंट्रल जेल में 70 की बजाए सिर्फ 40 स्टाफ ड्यूटी पर थे और ये बात जेल के ज्यादातर कैदियों को पता थी। जेल के 30 स्टाफ को एक साथ छुट्टी क्यों दे दी गई? हेड कांस्टेबल की हत्या की खबर मिलने पर भी बाकी सुरक्षा गार्ड ने अलार्म या सिटी बजा कर बाकी को अलर्ट क्यों नहीं किया?
जवाब: दीपावली की रात थी। इस रात अक्सर आधे से ज्यादा गार्ड अघोषित अवकाश पर रहते हैं। यह केवल इसी साल नहीं हुआ। गार्ड की हत्या के बाद उन सभी को अलर्ट कर दिया गया था। जो उपलब्ध थे। 

7. एनकाउंटर के दौरान तीन पुलिसवालों को चाकू से जख्म कैसे आए, जबकि वहां गोलियां चल रही थीं? एनकाउंटर के दौरान घायल हुए उन तीनों पुलिस वालों को छुपा कर क्यों रखा जा रहा है? उन्हें सामने क्यों नहीं लाया गया? पुलिस का कहना है कि आरोपियों ने धारदार हथियार से हमला किया था. मगर तस्वीरें दिखा रही हैं कि हथियार बिल्कुल साफ और चमचमाता हुआ है. उसपर खून का कोई धब्बा नहीं है।
जवाब: एनकाउंटर को कानून के दायरे में लाने के लिए चाकू से जवानों पर हमला दिखाने की कोशिश की गई लेकिन बाद में समझ आया कि यह कहानी गलत होगी। दरअसल, पुलिस कोई कहानी बना ही नहीं पाई। आतंकियों को देखते ही मार दिया गया और इससे पहले कि पुलिस कोई कहानी बना पाती, मीडिया एक्टिव हो गई। 

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