
आईपीएस डीसी सागर ने भोपाल समाचार से हुई बातचीत में बताया कि दिनांक 23 सितम्बर से 30 सितम्बर तक मैं माननीय डीजीपी साहब के आदेश जबलपुर में चल रही भर्ती में ड्यूटी पर था, क्योंकि जबलपुर के आईजी अवकाश पर थे। इस दौरान हमने 4 मुन्नाभाईयों को भी पकड़ा। जिस दिन यह घटना हुई, उस दिन मैं अभ्यर्थियों के बीच में था। उनका उत्साहवर्धन कर रहा था। जबलपुर के लोकल अखबारों में खबरें भी छपी हैं।
श्री सागर ने बताया कि मुझे तो घटना की जानकारी तब दी गई जब सारा मामला बिगड़ चुका था। यदि समय रहते मेरे पास सूचना आ गई होती तो मामला इतना बिगड़ता ही नहीं। उन्होंने यह भी बताया कि आईजी के अलावा एसपी को भी अंधेरे में रखा गया। यदि एसपी को जानकारी होती तो भी हम लोग स्थिति को संभाल लेते। सब कुछ हो जाने के बाद हम अपने स्तर पर जो भी उचित कार्रवाई कर सकते थे, हमने की।
बता दें कि ये वही आईपीएस अधिकारी हैं जिन्होंने नक्सली इलाकों में दहशत बरपा रखी थी। आईजी डीसी सागर और एसी असित यादव के बीच बेहतर तालमेल का ही परिणाम था कि बालाघाट में लंबे समय से वांटेड चल रहे कई नक्सलवादी पकड़े गए और कई प्रमुख राज खुलकर सामने आ पाए। कई बड़ी घटनाओं को रोका जा सका और दर्जनों नक्सलियों को सरेंडर कराकर मुख्यधारा में शामिल करने की प्रकिया पर काम हुआ। निश्चित रूप से यह टॉस्क, किसी अपराधी का एनकाउंटर कर देने से ज्यादा मुश्किल होता है।