
परिवार ने नहीं किया था मजबूर
उपवास के दौरान अराधना केवल एक दिन में दो बार पानी पीती थी और उसे इसके लिए उसके परिवार ने मजबूर नहीं किया था। उसके पिता लक्ष्मीचंद समदरिया ने बताया कि 35वें और 51वें दिन उन्होंने उससे खाना खाने का आग्रह किया था पर वह तैयार नहीं हुई। उन्होंने बताया कि आराधना पांच साल की उम्र से ही धार्मिक स्वभाव की थी। उसके अंकल ने बताया,’ सुबह में सबसे पहले प्रार्थना के लिए वही मंदिर का दरवाजा खोलती थी। उसने मात्र 13 वर्ष की उम्र में पुर्नजन्म से मुक्ति पा ली। उसे मोक्ष प्राप्त हुआ है।'
6 साल के बच्चे ने भी रखा था उपवास
उनके धर्म में उपवास को तपस्या के तौर पर लिया जाता है जो आवश्यक है हालांकि ये बच्चों के लिए जरूरी नहीं पर जो बच्चे करते हैं उनके लिए जश्न मनाया जाता है। पुलिस को इस बात के सबूत सोशल मीडिया से मिला है। 2013 में आराधना की तरह लंबा उपवास रखने वाले 6 साल के बच्चे को जैन संत के तौर पर सम्मानित किया गया, अहमदाबाद में 8 साल के बच्चे ने 83 दिन का उपवास रखा, अहमदाबाद में ही 9 साल की लड़की व 6 साल के उसके भाई ने 75 दिन का उपवास रखा।
पहले भी रखा था उपवास
वहीं परिवार का कहना है कि आराधना ने अपनी मर्जी से 68 दिन का चतुरमास उपवास किया था। उसे ‘बाल संत’ कहा जा रहा है। आराधना के दादा माणिकचंद समदरिया का कहना है कि आराधना ने अपनी मर्जी से उपवास किया था और वह उसकी मौत से दुखी हैं। उन्होंने कहा, यह उसकी श्रद्धा थी। उसने 2015 में भी 34 दिन का और 2014 में आठ दिन का उपवास भी किया था।
मां-बाप पर गैर इरादतन हत्या का मामला
हैदराबाद के जैन गुरु, रविंदर मुनिजी ने बताया कि जैन धर्म के बच्चों में 1 या 2 फीसद ही उपवास रखते हैं लेकिन उपवास के पहले और बाद में वे स्वस्थ रहते हैं। पुलिस अधिकारी एम मथैया का कहना है कि एक बाल अधिकार संस्था की शिकायत पर लड़की के मां-बाप पर गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया गया है। बालाला हक्कुला संघम नाम के इस एनजीओ का कहना है कि जैन धर्म के एक धार्मिक अनुष्ठान के तहत लड़की से दबाव में उपवास कराया गया।