
तो पहुचते है विद्यालय जहाँ नियमित शिक्षक भी 11 के बाद ही पहुचते हैं जहाँ चपरासी को बताना पड़ता है कि भैया घंटी लगा दो प्रार्थना का समय हो गया, जहाँ नियमित शिक्षक कभी-कभी अपनी कक्षाये लेते है छात्रों का नुकसान देख अपने विश्राम के समय में भी उन्हें पढ़ाने जाता हूँ, पढ़ने में रूचि लेने वाले कुछ ही छात्र मिलते हैं पर उनका नुकसान न हो इस लिए शिक्षक के धर्म से कभी कोई बेईमानी नहीं करता, अतिथि ही हुआ तो क्या।
रोज विद्यालय से 4.30 बजे ही छुट्टी मिल पाती है घर पहुचते लगभग 5.15 बज जाते हैं और इन सबके बदले मुझे मिलते है 3450 रुपये। इतने जो किसी नेता, मंत्री या माननीय के सुपुत्र का एकाध दिन का खर्च होगा, मैं अपने वर्ष भर का पाई-पाई भी जोड़ लूँ तो उतना नहीं कमा सकता जितना कि नियमित शिक्षको को एक महीने का वेतन मिलता है और अगर सिर्फ अध्यापन कि बात करूँ तो सीना ठोंक के कह सकता हूँ कि मैं कही ज्यादा मेहनत करता हूँ उन तथाकथित शिक्षको से।
मैं उन चतुर नेताओ से भी कह देना चाहता हूँ कि पैसे बचाने के ये जो नायाब तरीके आप ने ढूंढ निकाले थे कभी, यथा एक ही काम के लिए अलग-अलग श्रेणियां, अलग-अलग दाम, जहा आज एक पूर्ण शिक्षक के दाम पर आपने कम से कम दस अतिथि शिक्षक रखे है जिनसे सांप भी मर रहे है और आपकी लाठी भी नहीं टूट रही, आपने खुद के लिए एक गढ्ढा तैयार कर रखा है, हो सकता है आप ये भी कह दे की आपको हमारे वोट्स से कोई मतलब नहीं पर यकीं मानिये की आपको वोटों से ही मतलब है।
मज़बूरी है जो आपकी इस भीख के लिए मैं या मेरे जैसे कितने ही लोग परेशान है, मैं नियमतिकरण कि किसी खैरात का भूखा नहीं, पर आप तो रोजगार के अवसरों पर भी कुंडली मार कर बैठें है, बहरहाल मैं बस अपनी मेहनत के बदले एक ईमानदार और इज्जत भरा दाम चाहता हूँ क्योंकि मैं एक प्रशिक्षित अतिथि शिक्षक हूँ।