
एजुकेशन लोन लेने वाले छात्रों को पांच साल की मोहलत दी जाती है। इनमें चार साल पढ़ाई के और एक साल नौकरी तलाशने का समय शामिल होता है लेकिन पांच साल के बाद भी छात्रों को नौकरी नहीं मिल पा रही है। बैंक भी मानते हैं कि प्रदेश में रोजगार के अच्छे अवसर न होने से दस में से पांच विद्यार्थी डिफॉल्टर हो जाते हैं।
एजुकेशन लोन के बकाये के मामले में शीर्ष 10 राज्यों में मप्र आठवें नंबर पर है। आने वाले समय में हालात और भी बिगड़ सकते हैं, क्योंकि पिछले तीन सालों में प्रदेश में 62 हजार 601 स्टूडेंट ने उच्च शिक्षा के लिए 6 अरब 62 करोड़ 68 लाख 29 हजार रुपए का कर्ज लिया है।