भोपाल। मप्र की ताकतवर अफसरशाही का एक और नमूना सामने आया है। हाउसिंग सोसायटी फर्जीवाड़े का मामला विधानसभा में उठा था, तब तत्कालीन सहकारिता मंत्री गोपाल भार्गव ने घोटाले की जांच के लिए एसटीएफ गठित किए जाने का ऐलान किया था परंतु कमिश्नर ने मंत्री की इस घोषणा को रद्द कर दिया। कमिश्नर मनीष श्रीवास्तव का कहना है कि हमें पुलिस की मदद की जरूरत नहीं है। सहकारिता कानून में विभाग के अधिकारी ही दोषियों पर कार्रवाई कर सकते हैं। अब सवाल यह है कि मप्र में फाइनल अथॉरिटी कौन, मंत्री या अफसर ?
मप्र का हाउसिंग सोसायटी फर्जीवाड़ा एक बड़ा घोटाला है जो पूरे प्रदेश में हुआ है, लेकिन अधिकारी लगातार इसे दबाए रखने की कोशिश कर रहे हैं। इन दिनों संभागवार ब्यौरा तैयार किया जा रहा है। शुरूआत मई से हुई थी। 3 महीने बीत गए, अभी तक ब्यौरा तैयार नहीं हुआ। सबकुछ इतनी धीमी गति से चल रहा है कि आगामी विधानसभा चुनाव तक भी इस घोटाले में कार्रवाई नहीं हो पाएगी। फाइलें धूल चाटती नजर आएंगी और अधिकारियों का अनुमान है कि मीडिया भी मामले को भूल जाएगी।
इससे पहले अधिकारियों ने इस मामले को न्यायिक बताकर टाल दिया था। मनीष श्रीवास्तव, आयुक्त, सहकारिता विभाग का कहना है कि सोसायटी के संचालक मंडल को बहुत ज्यादा शक्ति दी गई है। कार्रवाई का अधिकार उसे ही है। हम तो सिर्फ निगरानी कर सकते हैं। दोषियों के खिलाफ कब तक कार्रवाई होगी इसका समय नहीं बता सकता लेकिन पूरी मशीनरी काम कर रही है।
गोपाल भार्गव, तत्कालीन सहकारिता मंत्री का कहना है कि मैंने तो नोटशीट लिख दी थी, अब विभाग मेरे पास नहीं है, लेकिन हाउसिंग सोसायटी घोटाले के दोषियों पर कार्रवाई होनी चाहिए।
विश्वास सारंग, सहकारिता मंत्री का कहना है कि अधिकारियों से सोसायटी की शिकायत, निराकरण और पीड़ितों की जानकारी मंगाई है लेकिन एसटीएफ से जांच कराने का कोई प्रस्ताव नहीं है। सारंग ने दमदारी से कहा कि कोई कितना भी बड़ा हो, कार्रवाई नियमानुसार ही होगी परंतु कब शुरू होगी, अनुमानित समय बताने में सारंग भी असमर्थ नजर आए।