प्रभात पुरोहित। चीन तिब्बत सीमा से लगा देश का अंतिम गांव माणा जितना सामरिक लिहाज से जाना जाता है, उतनी ही अपनी सांस्कृति पहचान के लिए मशहूर है। यहां का पहनावा, वेश-भूषा अपने आप खास है। ग्रामीण महिलाओं द्वारा तैयार ऊनी वस्त्र जहां लोगों की पहली पंसद होते हैं, वहीं यहां का पहनावा भी बाहर से आने वाले सैलानियों को आकर्षित करता है।
विश्व प्रसिद्द बद्रीनाथ धाम से चार किमी की दूरी पर स्थित है। सीमा से लगा देश का अंतिम गांव माणा, जिसे पौराणिक काल में मणिग्राम के नाम से भी जाना जाता था। वेदों की रचना वाली इस भूमि की जितनी प्राकृतिक सुंदरता है, उतनी ही खूबसूरत यहां की साज सज्जा व पौराणिक पौषाक की है। त्योहारों के अवसर पर ग्रामीणों द्वारा पौणा नृत्य का आयोजन किया जाता है, जिसकों देखने के लिये देश के विभिन्न हिस्सों से लोग यहां यहां आते हैं। गांव में कोई भी धार्मिक कार्य हो या फिर कोई भी त्योहार ग्रामीण अपने पारम्परिक पौशाक व नृत्यों के साथ झूमते-गाते दिखायी देते हैं।
ग्रामीण हेमा पंखोली सुशीला रावत पुष्पा पंखोली का कहना है कि आने वाली पीढ़ी कहीं, इससे महरूम न हो जाय इसके लिये सभी तो यहां पौराणिक ड्रेस पहनी होती है। गांव में रहने वाले लोग यहां मुख्य रूप से ऊनी वस्त्रों का कारोबार करते हैं, यहां क्या महिलायें क्या पुरुष हर कोई ऊनी वस्त्रों को बनाने में निपुण होते है। गांव में कोई भी त्यौहार हो तो देश विदेश में रहने वाले सभी लोग अपने गांव आकर पारम्परिक संस्कृतियों का निर्वहन करते है।
ग्राम प्रधान केएस बडवाल का कहना है कि गांव में महिलाओं द्वारा बनाये गये ऊनी वस्त्रों को खरीदने के लिये बद्रीनाथ धाम आये यात्री आते रहते है, जिससे उनकी आर्थिकी भी बढ़ती है। वास्तव में माणा गांव अपने आप में एक विरासत है।