कोर्ट, सरकार को नियम बनाने के लिए आदेशित नहीं कर सकती: हाईकोर्ट

जबलपुर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने चमत्कारी विज्ञापनों के खिलाफ दायर जनहित याचिका इस आशय की दो-टूक टिप्पणी के साथ खारिज कर दी कि इस सिलसिले में सरकार को नियम बनाने के लिए आदेश जारी नहीं किया जा सकता। यह सरकार के स्वतंत्र क्षेत्राधिकार का विषय है, जिसमें हाईकोर्ट हस्तक्षेप नहीं करेगा।

सोमवार को कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेन्द्र मेनन व जस्टिस अनुराग कुमार श्रीवास्तव की युगलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान जनहित याचिकाकर्ता युवा प्रकोष्ठ नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच के प्रांताध्यक्ष मनीष शर्मा की ओर से अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि मीडिया खासतौर पर समाचार पत्रों व पत्रिकाओं में अक्सर ऐसे विज्ञापन प्रकाशित होते रहते हैं, जिनके जरिए भोली-भाली जनता को चमत्कार के लोक-लुभावन झांसे में डालकर लूटा जाता है। 

कायदे से इस तरह के विज्ञापन प्रकाशित कराना और करना दोनों ही रवैये अनुचित है। इसके बावजूद ऐसे विज्ञापनों पर ठोस रोक संबंधी नियम न होने के कारण अंकुश मुमकिन नहीं हो पा रहा है। हाईकोर्ट आने से पूर्व जनहित याचिकाकर्ता ने राज्य शासन को विधिवत अभ्यावेदन सौंपा था, उस पर कोई संतोषजनक कार्रवाई नदारद रहने के कारण व्यापक जनहित में हाईकोर्ट आना पड़ा।

हाईकोर्ट ने पूरे मामले पर गौर करने के बाद जनहित याचिका पर हस्तक्षेप से इनकार कर दिया। हाईकोर्ट ने साफ किया कि यह सरकार के स्वतंत्र क्षेत्राधिकार का विषय है। वह चाहे तो नियम बनाए और न चाहे तो न बनाए लेकिन हाईकोर्ट उसे आदेश जारी करके नियम बनाने के लिए बाध्य नहीं कर सकता। लिहाजा, जनहित याचिकाकर्ता बजाए हाईकोर्ट से किसी दिशा-निर्देश की अपेक्षा के अभ्यावेदन के जरिए पुनः प्रयास के लिए स्वतंत्र है।

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