जल्दबाजी और उतावलापन

"आतुरता" और "अधीरता" की बुराई मनुष्य को बुरी तरह परेशान करती है। प्रायः हमें हर बात की बहुत जल्दी रहती है, जिस कार्य में जितना समय एवं श्रम लगना आवश्यक है, उतना नहीं लगाना चाहते, अभीष्ट आकांक्षा की सफलता तुरत-फुरत देखना चाहते हैं। इसके लिए कई बार अनीति का मार्ग भी अपनाते हैं।

धैर्यपूर्वक सदाचरण के मार्ग पर चलते रहना और अपने में जो दुर्बलताएँ हों, उन्हें एक-एक करके हटाते चलना, यही तरीका सही है। इस सुनिश्चित पद्धति को छोड़कर अधीर लोग बहुत जल्दी अत्यधिक प्राप्त करने की चेष्टा करते हैं और जो कुछ उनके पास था, उसे भी गँवा बैठते हैं।

"उतावलापन" मनुष्य स्वभाव का एक दोष है। इसीलिए एक कहावत प्रचलित है "उतावला सो बावला"। कोई भी काम करने का एक तरीका होता है, एक व्यवस्था होती है। प्रायः लोग उतावली करते हैं और परिणाम उलटा हो जाता है, जल्दी के बजाए देर हो जाती है, सो भी काम अव्यवस्थित, अस्त-व्यस्त एवं त्रुटिपूर्ण होता है। जल्दबाज व्यक्ति हर काम में उतावली करता है, खाने में उतावली, कहीं जाने में उतावली, बात करने में उतावली आदि । यह उतावलापन काम बनाने की बजाय बिगाड़ ही देता है। इसीलिए कहते हैं कि काम को पूरी तरह चित्त लगाकर निरंतरता के साथ करिए, न ज्यादा विलंब हो, न ज्यादा जल्दी। "उतावली" वास्तव में शीघ्रता नहीं कमजोर मन की विक्षिप्तता होती है। इस मानसिक दुर्बलता से बचना चाहिए और काम को जमे हुए ढंग से करना चाहिए। उन्नति और अभीष्ट मात्रा में इच्छित सफलता तुरत-फुरत नहीं मिलती, तो निराशा भी उत्पन्न हो जाती है। लोग अनेक काम आरंभ करते हैं, सफलता में देर लगती देख छोड़ बैठते हैं और फिर नया काम शुरू करते हैं। इस प्रकार अपना धन, समय और श्रम बरबाद करते रहते हैं। ऐसे लोगों में जोश बहुत होता है, पर वे निराश भी जल्दी हो जाते हैं और मनोरथ पूरा करने के लिए साधु- संत के आशीर्वाद, देवताओं के वरदान, जंत्र-मंत्र आदि उपाय तलाशते हैं।

हमें जानना चाहिए कि हर कार्य समय साध्य है और श्रम साध्य भी। कोई मार्ग ऐसा नहीं जिसमें रुकावटें और बाधाएँ न हों। उन्हें हटाने के लिए प्रयत्न भी करना पड़ता है और धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा भी। आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों, परिश्रमी और पुरुषार्थी को तो सफलता मिलती ही है और यदि न भी मिले तो उसकी प्रतिभा और क्षमता तो बढ़ती रहती है। प्रयत्नशीलता से, पुरुषार्थ से व्यक्तित्व निखरता है और उसके आधार पर प्रगति की ऊंची मंजिल पर चढ़ सकना संभव हो जाता है।
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