तो ऐसे जन्मा भारत में “भगवा आतंकवाद”

राकेश दुबे@प्रतिदिन। शायद भारत ही विश्व में  ऐसा देश है जहाँ अदालत का काम राजनीति करती है और  मीडिया के जरिये राजनीति वो सब फैलाने में सफल होती है जिसे “निर्णय” कहा जाता है|  “भगवा आतंकवाद”  शब्द का उदय भी ऐसे ही हुआ है | जिस मामले से इसी शुरूआत हुई, उसमे न्यायिक हिरासत में क़रीब आठ साल से जेल में बंद साध्वी प्रज्ञा को नैशनल इनवेस्टिगेशन एजेंसी यानी एनआईए के 13 मई 2016 को दायर पूरक आरोप-पत्र में क्लीनचिट दी जा चुकी है। उम्मीद की जा रही है कि क़ानून की औपचारिक प्रक्रिया पूरी होते ही वह कम से कम इस केस से बरी कर दी जाएंगी और संभव है कि वह जेल से रिहा भी हो जाएं।

साध्वी को बरी करने का मतलब ब्लास्ट में उनके ख़िलाफ़ जांच एजेंसियों के पास इतने सबूत नहीं हैं, जिससे उन्हें दोषी साबित कर सज़ा दिलाई जा सके। इसका यह भी मतलब होता है कि साध्वी और अन्य दूसरे पांच आरोपियों को बिना पर्याप्त सबूत के ही गिरफ़्तार कर लिया गया था। यानी उस अपराध ने उनकी ज़िंदगी ही नष्ट नहीं कर दी, बल्कि उन्हें आठ साल जेल में भी रखा | अब सवाल उठता है कि इतनी लंबी कस्टडी के दौरान पूरी एटीएस की टीम थर्ड डिग्री टॉर्चर और मर्यादा भंग करने के बावजूद प्रज्ञा, पुरोहित और दूसरे नौ आरोपियों के ख़िलाफ़ ऐसे सबूत क्यों नहीं जुटा पाई, जिनसे उनकी गिरफ़्तारी को न्यायोचित ठहराया जाता और मालेगांव ब्लास्ट में आरोपियों की संलिप्तता साबित की जा सकती।

इससे जुदा सबसे बड़ा सवाल यह है कि आख़िर करकरे सारी सूचनाएं कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह से क्यों शेयर करते थे? वह एटीएस चीफ के रूप में तत्कालीन मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख को रिपोर्ट करते थे, या फिर दिग्विजय सिंह  को? अगर वह दिग्विजय सिंह  को रिपोर्ट नहीं करते थे, तब उन्हें अक्‍सर फोन क्यों करते थे? इन यक्ष प्रश्नों के उत्तर एटीएस और एनआईए की ओर से दायर तीनों आरोप पत्रों में भी नहीं मिलता है। कई लोग पूछते हैं कि जब करकरे की जान को वाक़ई ख़तरा था, जैसा कि दिग्विजय सिंह दावा करते हैं कि करकरे ने उनसे कहा था कि उनकी जान को ख़तरा है, तब करकरे ने दिग्विजय को ही यह बात क्यों बताई? बतौर सबूत दिग्विजय सिंह टेलीफोन कॉल के आइटमाइज़्ड बिल भी सार्वजनिक कर चुके हैं, जिससे साबित हो जाता है कि करकरे उन्हें अपने ऑफिशियल लैंडलाइन से वाक़ई कॉल किया करते थे। 

दरअसल, करकरे की मृत्यु के एक साल बाद दिग्विजय ने छह दिसंबर 2010 को मुंबई में एक सभा में यह दावा किया था कि मुंबई आतंकी हमले में मारे जाने से पहले करकरे ने उन्हें फोन किया था और कहा था कि मालेगांव ब्लास्ट में “हिंदू आतंकवादियों” को पकड़ने से उनकी जान को दक्षिणपंथी यानी हिंदू संगठनों से ख़तरा है।यहाँ से जन्म हुआ भगवा आतंकवाद का और समाज में चल निकला | नेताओं को और मीडिया को ऐसी घटनाओं से बचना चाहिए और न्यायलय को उसका काम करने देना चाहिए |
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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