स्वाइन फ्लू, डेंगू जैसे हर संक्रमण से नागा साधुओं की रक्षा करती है यह भस्म

हिंदू धर्म का सबसे बड़ा धार्मिक मेला सिंहस्थ कुंभ उज्जैन में जोरो-शोरो से चल रहा। जहां पर नागा साधु आकर्षण का केंद्र बने हुए है। नागा साधु का जीवन सबसे अलग और निराला होता है। इनका जीवन कई कठिनाइयों से भरा हुआ होता है। कई कठोर तपस्याओं से गुजरने के बाद एक साधु को नागा साधु की पदवी मिल पाती है। इससे पूर्व वो मृत्यु के दरवाजे तक पहुंच चुका होता है। 

नागा साधु कभी कपड़े पहनते। वो अपने शरीर पर राख या भभूति लगाकर रखते हैं। इसका रहस्य ना जानने वाले कई तरह के कटाक्ष भी करते हैं परंतु नागा साधु इस भभूत को अपने श्रृंगार का एक हिस्सा मानते हैं। यह भभूत कोई सामान्य राख नहीं होती जैसी की आपके आसपास पाई जाती है बल्कि एक विशेष प्रक्रिया से गुजरकर बनती है। 

नागा साधु भभूत बनाने के लिए हवन कुंड में पीपल, पाखड़, रसाला, बेलपत्र, केला व गऊ के गोबर को भस्म (जलाना) करते हैं। इस भस्म की हुई सामग्री की राख को कपड़े से छानकर कच्चे दूध में इसका लड्डू बनाया जाता है। इसे सात बार अग्नि में तपाया और फिर कच्चे दूध से बुझाया जाता है। इस तरह से तैयार भस्म को समय-समय पर लगाया जाता है। जिसे नागा साधु का वस्त्र माना जाता है।

इस भभूत को लगाकर ने शरीर में किसी भी प्रकार का संक्रमण असर नहीं करता। ना तो स्वाइन फ्लू का कोई खतरा होता है और ना ही डेंगू वाले मच्छरों का कोई असर। यहां तक कि कई जहरीले जीव जंतुओं का जहर भी निष्प्रभावी हो जाता है। 

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