शरद क्षीरसागर। आज संयुक्त मोर्चे का असंतोष रैली का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। जाहिर सी बात है की गणना पत्रक जारी नहीं होने से अध्यापको में भरपूर असंतोष है और ऐसा कोई होना कार्यक्रम लाजमी ही था। क्योंकि असंतोष तो इस प्रदेश के लाखों अध्यापकों के मन में ही है, सैकड़ों की संख्यां में अध्यापक एकत्रित हुए। और आक्रोश व्यक्त किया।
दुःख की बात यह है, की आज के कार्यक्रम का दो संगठनों ने बहिष्कार और विरोध करने की भूमिका व्यक्त की। एक संगठन जो विधायक के संरक्षण और सरकारी तंत्र पर जीवित है। जिसका नेता पिछले अठारह वर्षो से अध्यापकों के रक्त से पल्लवित और पोषित है। जिसने अध्यापको के विवाद और संयुक्त मोर्ची में दरार का बहाना लेकर सबसे दूरी बना ली और तथाकथित क्रान्तियात्रा करके अपने मरते वजूद को ज़िंदा रखने की कोशिश कर रहा है। और दूसरा संगठन जिसे हमने इस प्रदूषित व्यवस्था के खिलाफ लड़ने के लिए बनाया और तैयार किया था। एक क्रांतिकारी व्यक्तित्व को बागडोर देकर 13 सितम्बर 2015 से नये नायक का स्वरूप दिया था।
अफ़सोस की जिसे सर्वस्व समर्थन देकर हमने नायक बनाया था, वो और और उसके कुछ अनुयायी सिर्फ अपने संगठन और अपने नेता के कहने पर 1 मई के कार्यक्रम को विफल करने की कोशिश करते रहे। कभी शाहजहानी की अनुमति निरस्त होने, कभी 3 मई को आदेश जारी होने अन्यथा कभी उज्जैन जाकर इस देश प्रदेश के अध्यापकों के मान सम्मान को कलंकित करने का प्लान बनाकर समस्त प्रदेश के अध्यापको को पथ विमुख करने की शर्मनाक हरकत करते रहे।
मै इन संगठन के इन दलाल नेताओं से पूछना चाहता हूँ की आखिर आप सब ये क्यों कर रहे हैं.. आपका स्वार्थ तो पूरा हो ही चुका है... आपको जो निजी तौर पर जो मिलना था, वो मिल चुका है.. तो प्रदेश के लाखों अध्यापकों का पथ भ्रष्ट क्यों कर रहे है।
आज प्रदेश का हर अध्यापक ठगा सा बैठा है। उसकी उम्मीद मर चुकी है मगर आशा की एक डूबती सी किरन हर संगठन और नेता से हैं, तो उसे उसका हक दिलवाइये, या तो मैदान में आईये या किसी चुल्लू भर पानी में डूबकर मर जाइए, मगर एक अध्यापक को अपना अधिकार लेने के लिये हर आन्दोलन में शामिल होने से मत रोकिये।
|| शरद क्षीरसागर ||
अलीराजपुर [म.प्र.]