10वीं, 12वीं फेल छात्रों से मोटी कमाई की सरकारी योजना

अनिल नेमा। विगत दिनों माध्यमिक शिक्षा मंडल द्वारा कक्षा 10वी, 12वी का परीक्षा परिणाम घोषित हुआ। 12 वी में लगभग 30 प्रतिशत व कक्षा 10वी में लगभग 46 प्रतिशत विद्यार्थी अनुतीर्ण हुई। आंकड़ो के मुताबिक कक्षा 10 वी 204766 व कक्षा 12 वी में 104881 विद्यार्थी असफल रहे।  कई विद्याथियों ने अनुतीर्ण होने पर आत्महत्या जैसे कृत्य को अंजाम दिया। प्रदेश सरकार ने विद्याथियों का वर्ष खराब न हो इसके लिये ‘‘रूक जाना नहीं’’ योजना प्रस्तावित की जो सराहनीय कार्य है किन्तु परीक्षा के लिये जो परीक्षा फीस निर्धारित की उससे ये बात स्पष्ट होती है कि राज्य ओपन बोर्ड परीक्षा के नाम पर विद्याथियों के कृंठित मन के साथ माकेंटिग कर लाखों रूपये कमाने की फिराक में है। ‘‘शुल्क मुक्त शिक्षा’’ का नारा देने वाले विद्याथियों को भावनात्मक झांसा देकर लाखों रूपये के व्यारे न्यारे करने में लगे है। इस परीक्षा में अनुतीर्ण विद्याथियों से 2060 रूपये तक की फीस वसूल की जा रही है जो सरासर गलत है। 

गौरतलब है कि माध्यमिक शिक्षा मंडल नियमित विद्याथियों से कक्षा 10वी एवं 12 वी की परीक्षा शुल्क 525 रूपये एवं एस.सी. व एस.टी. विद्याथियों से मात्र 25 रूपये लेकर परीक्षा सम्पन्न करा लेता है ।  कक्षा 9 वी व 11 वी परीक्षा बोर्ड पैटर्न पर कराने के लिये माध्यमिक शिक्षा मंडल 80 रूपये की परीक्षा शुल्क लेता है । माध्यमिक शिक्षा मंडल द्वारा इस सत्र की पूरक परीक्षा के लिये 250 रूपये की शुल्क निर्धारित है । फिर ‘‘रूक जाना नहीं’’ योजना की परीक्षा के लिये 2060 रूपये तक की शुल्क क्यो?  सरकार की मंशा यदि कुठित मन को संवारने की है तो फिर पालक के जेब पर इतना बोझ क्यो ? लाखों रूपये खर्च कर सरकारी विज्ञापन में इतनी फीस लेने के बाद भी विद्याथियों को हितग्राही की संज्ञा दी है और परीक्षा पूर्व प्रशिक्षण की निःशुल्क बताया गया है । 

स्मरणीय है कि शिक्षकों के द्वारा प्रश्न पत्र की सेटिंग की कार्यशाला,प्रश्न पत्र की माॅंडरेटिंग,प्रश्न पत्र के मुद्रण, पेकिंग, प्रश्न पत्रों के वितरण, संकलन केन्द्र तक प्रश्न पत्र के परिवहन, केन्द्राध्यक्ष की नियुक्ति, पर्यवेक्षण व्यय, प्रश्न पत्रों का मूल्यांकन, डाटा का संकलन और परीक्षा परिणाम पर ईमानदारी से व्यय किया जाये तो इन सब का खर्च प्रति विद्यार्थी 100 रूपये से ज्यादा नहीं हो सकता फिर बहुराष्ट्रीय कम्पनी के भाति विज्ञापन, प्रचार प्रसार कर भारी भरकम फीस वसूल करना पालकों का शोषण है।  

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