कौन तय करेगा, कौन सी दवा लें

राकेश दुबे@प्रतिदिन। स्वास्थ्य मंत्रालय क 344  दवाओ पर प्रतिबन्ध से बेचैन कुछ कंपनियां अदालत पहुंच गई और वहां से पाबंदी के खिलाफ अंतरिम आदेश पारित करा लाई| ऐसे में बेचारी केंद्र सरकार को आखिरकार कहना पड़ा है कि ऐसा करना जनिहत और मरीजों की सेहत के खिलाफ है और इससे साबित होता है कि फार्मा कंपनियों को अपने मुनाफे के सिवा किसी और बात की चिंता नहीं है| उल्लेखनीय है कि देश में बड़े पैमाने पर दवाएं बेच रही जिन ३०  दवा कंपनियों के उत्पादों पर प्रतिबंध लगाया गया है| उनमें फाइजर, ग्लेनमार्क, प्रॉक्टर एंड गैंबल और सिप्ला जैसी बड़ी कंपनियां शामिल हैं|

इन कंपनियों की प्रतिबंधित की गई दवाओं में विक्स एक्शन ५००  एक्सट्रा, कफ सीरप कोरेक्स, फेनेसिडिल और बेनाड्रिल जैसी कई मशहूर दवाएं हैं. इनमें से कई दवाएं ऐसी हैं, जिनके लिए जनता किसी डॉक्टरी नुस्खे (प्रेस्क्रिप्शन) तक का प्रबंध नहीं करते और बिना परचे के खरीदते रहे हैं| एक रिसर्च फर्म  ‘एआईओसीडी अवॉक्स’ के मुताबिक इस प्रतिबंध से देसी दवा कंपनियों को करीब तीन हजार करोड़ सालाना के बिजनेस का नुकसान होगा| यह भी बताया जा रहा कि जनता की सेहत की फिक्र करते हुए सरकार करीब १२००  और एफडीसी दवाओं पर पाबंदी लगाने की तैयारी में है और कुल मिलाकर छह हजार एफडीसी दवाएं उसके रडार पर हैं|

चूंकि सरकार की यह सजगता फार्मा कंपनियों के मुनाफे  के खिलाफ जा रही है, इसलिए उन्होंने अदालत के बाहर भी पाबंदी के खिलाफ आवाज उठाना शुरू कर दिया है|  जैसे, ‘बेंगलुरु डिस्ट्रिक्ट केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन’ का तर्क है कि इससे देश की छवि खराब होगी और जनता सस्ते इलाज से वंचित हो जाएगी| सस्ते इलाज के संबंध में फार्मा कंपनियों को कहना है कि एक ही टैबलेट या सीरप में कई दवाओं का मिश्रण मिल जाने से मरीज कई दवाएं एक साथ खरीदने और खाने से बच जाता है|  जिससे इलाज की लागत घट जाती है| जैसे, बाजार में बिकने वाले एफडीसी में सबसे ज्यादा संख्या एटॉरवास्टेटिन, रैबीप्राजोल और पैरासिटामॉल के संयोग से बनाई गई तत्वों की है|  एटॉरवास्टेटिन का इस्तेमाल कोलेस्ट्रॉल और ट्राईग्लीसराइड का स्तर कम करने के लिए किया जाता है और रैबीप्राजोल पाचन संबंधी बीमारियों का इलाज करने के काम आती है|

 इन सभी एफडीसी के बारे में विशेषज्ञों का मत है कि एक ही दवा के भीतर कई दवाओं  को मिला देने से लोगों में दवाओं के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता पैदा हो जाती है. ऐसे में जरूरत पड़ने पर सबंधित दवाएं कारगर नहीं होतीं और कई बार तो दवाओं के विषैले प्रभाव की वजह से अंग भी काम करना बंद कर देते हैं| अब मामला कोर्ट में है , जज साहब को तय करना है, जनता कौनसी दवा ले |
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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