विदेश से डॉक्टरी पढ़कर आने वाले 77% भारत में फेल

पिछले 12 बरसों में विदेशों से मेडिकल की डिग्री लेकर लौटे औसतन 77 फीसद भारतीय छात्र ‘मेडिकल काउंसिल आॅफ इंडिया’ (एमसीआइ) की अनिवार्य जांच परीक्षा पास करने में नाकाम रहे। देश के बाहर के किसी चिकित्सा संस्थान से ‘प्राइमरी मेडिकल क्वालिफिकेशन’ की डिग्री लेने वाला कोई नागरिक अगर एमसीआइ में या किसी राज्य की चिकित्सा परिषद में प्राविजनल या स्थायी रूप से पंजीकरण कराना चाहता है तो उसे एमसीआई द्वारा राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड (नेशनल बोर्ड आॅफ एग्जामिनेशन्स ...एनबीई) के माध्यम से संचालित जांच परीक्षा उत्तीर्ण करने की जरूरत होती है। 

यह जांच परीक्षा ‘फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट्स एग्जामिनेशन’ (एफएमजीई) कहलाती है। आरटीआइ कानून के अंतर्गत एनबीई द्वारा मुहैया कराए गए आंकड़ों से पता चलता है कि 2004 में एमसीआई द्वारा संचालित परीक्षा में सफल उम्मीदवारों की संख्या 50 फीसद से अधिक थी जो बाद के बरसों में घटती चली गई और एक बार तो यह प्रतिशत केवल चार रहा। 

बीते 12 साल में ज्यादातर सत्रों में पास होने वाले छात्रों का प्रतिशत 20 फीसद के आसपास ही रहा। परीक्षा आयोजित करने वाले निकाय से मिले आंकड़ों के अनुसार, जुलाई 2014 में 5,724 परीक्षार्थियों में से केवल 282 छात्र ही पास हुए और यह प्रतिशत चार फीसद था। 

इस माह के शुरू में संसद की एक स्थायी समिति की रिपोर्ट में कहा गया था कि ‘दुनिया भर में सर्वाधिक संख्या में मेडिकल कॉलेज होने के बावजूद भारत में इंडियन मेडिकल रजिस्टर में वर्तमान में 9.29 लाख डॉक्टर पंजीकृत हैं और भारत विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुसार, डॉक्टर और आबादी का अनुपात 1:1000 का लक्ष्य हासिल करने में पीछे है।’ 

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