
बुधवार को मुख्य न्यायाधीश अजय माणिकराव खानविलकर व जस्टिस केके त्रिवेदी की युगलपीठ में मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान जनहित याचिकाकर्ता भोपाल के समाजसेवी आरके महले का पक्ष अधिवक्ता पराग चतुर्वेदी ने रखा। उन्होंने दलील दी कि संविधान के अनुच्छेद-311 में दी गई स्पष्ट व्यवस्था के तहत भ्रष्टाचार का आरोप सिद्ध पाए जाने पर अविलंब बर्खास्त कर दिया जाना चाहिए। लेकिन इसके विपरीत प्रमोद नायर को सजा होने के बावजूद नौकरी पर बहाल रखा गया और ससम्मान सेवानिवृत्त करके पेंशन समेत सभी लाभ सुनिर्धारित कर दिए गए। इससे साफ है कि विभागीय स्तर पर जमकर सांठगांठ चली है। प्रमोद नायर ने 2008 में अपने विभाग के अंबोरे नामक साथी कर्मचारी को एरियर्स स्वीकृति के लिए रिश्वत देने विवश किया था। अंबोरे ने सीबीआई में शिकायत कर दी। जिसके बाद नायर पकड़ा गया। भले ही उसे अदालत ने सजा दे दी लेकिन विभाग ने नियम-कानून को बलाएताक रखकर उपकृत कर दिया।