इतिहास लिखवाने से ज्यादा जरूरी है उसे समझाना

राकेश दुबे@प्रतिदिन। मेरे एक मित्र प्रोफेसर मणि शंकर डोंगरे इतिहास पर एक सेमिनार कर रहे है | इतिहास एक धारावाहिक विषय है, मेरे विषय विज्ञान ,विधि, भाषा और पत्रकारिता रहे है| इतिहास थोडा पढ़ा पर इतिहासकारों को ज्यादा पढ़ा |इस देश के इतिहासकार मूलत: दो स्तरों पर विचारधारात्मक धरातल पर बंटे हुए हैं- एक दल इतिहास को भारतीय नजरिए से देखने की वकालत करता है और यह मांग रखता है कि इस देश की संस्कृति और इसके अतीत को स्वदेशी तरीके से देखने की कोशिश होनी चाहिए ताकि इतिहास देशवासियों के बीच एकता को बल प्रदान कर सके| दूसरे खेमे की दृष्टी  अलगहै |

 इस दृष्टि में धर्म एक महत्त्वपूर्ण कारक है और यह माना जाता है कि पहले अंग्रेज और उसके बाद उनकी राह पर चले ‘सेक्युलर’ कांग्रेसपंथी इतिहासकार इस देश की आंतरिक एकता के सूत्रों की अनदेखी करके ऐसा इतिहास लिखते रहे हैं, जो देश के इतिहास को विभाजक दृष्टि से देखता  है| दूसरी ओर, समन्वयवादी इतिहासदृष्टि के साथ जुड़े इतिहासकार हैं, जो देश को एक आधुनिक समय की अवधारणा के रूप में देखते हैं, देश को देखने समझने के लिए समाज के वैश्वविध्यपूर्ण रूपों के विश्लेषण में विश्वास करते हैं और समाज के बदलावों के लिए धर्म समेत तमाम तरह के कारकों का वैज्ञानिक विश्लेषण जरूरी समझते हैं|  इस दूसरी दृष्टि के लिए प्राचीन काल हिंदू काल नहीं, मध्यकाल मुस्लिमकाल  नहीं क्योंकि आधुनिक काल आधुनिक काल है न कि ईसाई काल|

शासक की रीति नीति से ज्यादा महत्त्व समाज के इतिहास को देते हुए यह दूसरी दृष्टि इस देश के इतिहास को ऐतिहासिक दृष्टि से समझना चाहती है न कि धार्मिंक दृष्टि से| इतिहासकारों के बीच इस विभाजन के बीच यह माना जाता है कि दूसरी दृष्टि को स्वतंत्रता के बाद सरकार की ओर से सांस्थानिक मदद मिली जिसके कारण ये प्रभावी हुए|  बहुत सारे लोग मानते हैं कि ये सेक्युलर इतिहासकार कांग्रेसी इतिहासकार ही हैं. ये गैर कांग्रेसी इतिहास की उपेक्षा करते हैं और कुछ खास तरीके से अपने चुने हुए महान जैसे अशोक, अकबर और जवाहरलाल नेहरू की भूमिकाओं को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते हैं|

जाहिर है, ऐसे लोग हिंदू-मुसलमान के ऐतिहासिक द्वन्द्वों की अनदेखी करते हैं, स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास को ऐसे पेश करते हैं, मानो इसे गांधी नेहरू ने ही पूरी तरह से संचालित किया था और अन्य नेताओं की कोई खास भूमिका नहीं थी| इतिहास को लिखने से ज्यादा उसे समझने की दृष्टी का विकास जरूरी है | सरकार इतिहास लिखवाने के स्थान पर उसे ठीक से समझाने पर जोर दे |


  • श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
  • संपर्क  9425022703
  • rakeshdubeyrsa@gmail.com 
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