
खोसला आयोग और शाहनवाज कमेटी ने नेताजी के सहयात्री और दुर्घटना में बच गए लोगों के बयान भी लिए थे| यही नहीं, नेताजी की सेवा करने वाली नर्स शान का उनके निधन के एक साल बाद दिया बयान भी इसकी पुष्टि करता है| नर्स शान ने कहा, जब उनकी मृत्यु हुई मैं उनके पास ही थी, वह 18 अगस्त 1945 को चल बसे| नर्स ने परिचर्या सम्बन्धी बात कही थी | डॉ तानेयोशी योशिमी ने भी ऐसा ही कुछ कहा था | लेकिन इन सारी बातों को दरकिनार कर मोरारजी देसाई ने 1978 में इससे इतर बयान देकर नेताजी के जीवन और मृत्यु के संदर्भ में एक नया विवाद खड़ा कर दिया| वर्ष 1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इस विवाद के स्थाई समाधान के लिए मुखर्जी आयोग का गठन कर दिया| इस आयोग ने भी विमान दुर्घटना में नेताजी के मारे जाने को सिरे से खारिज कर दिया| फैजाबाद के गुमनामी बाबा को नेताजी की तरह पेश किया गया| 1980 में बाबा जय गुरुदेव खुद नेताजी बनकर कानपुर उपस्थित हो गए|
राजनेताओं से लेकर धर्मगुरु तक सबके लिए नेताजी एक ऐसी बैसाखी बन गए जिससे जनता के दिलों में उतरा जा सकता था| यह इसलिए सच है क्योंकि नेताजी एक हीरो थे| भारतीय फिल्म में कोई हीरो मरता नहीं है. हम हीरो को मरते हुए देख नहीं सकते| यही वजह है कि 71 साल से विवादों की शक्ल में अपने हीरो को जिंदा रखे हैं| उनके कर्म, उनका योगदान, उनकी प्रेरणा, उनका आत्मबल और आजादी की उनकी जिजीविषा किसी भी भारतीय के दिल में कभी मर नहीं सकती है| तो आखिर क्या वजह थी कि कांग्रेस नेताजी के मौत के रहस्य से सच का पर्दा उठाने को तैयार नहीं थी? यह सारा इस पूरे विवाद में पक्ष-विपक्ष खड़े लोगों की भूमिका को संदेह के घेरे में डालता है.
24 जनवरी 2014 को कटक में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप राजनाथ सिंह ने कहा था कि अगर भाजपा सत्ता में आई तो नेताजी की मौत से रहस्य के पर्दे हटाएगी| लोक सभा चुनाव के दौरान नरेन्द्र मोदी ने इसे अकादमिक और बौद्धिक विषय से आगे जनआकांक्षाओं का सबब बना दिया. हालांकि यह सच है कि भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार को 1997 में रक्षा मंत्रालय से आजाद हिंद फौज की 990 फाइलें प्राप्त हुई थीं, वर्ष 2012 में खोसला आयोग की 271 फाइलें, न्यायमूर्ति मुखर्जी जांच आयोग की 751 फाइलें और संबंधित कुल 1030 फाइलें गृह मंत्रालय से प्राप्त हुई थीं. ये फाइलें जनता के लिए पहले से ही उपलब्ध हैं| लेकिन फिर राजनीति मुद्दा बनाये हुए है, रहस्य ज्यो का त्यों है |
- श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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