
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि जब एसटीएफ जांच कर रहा था, तब उसके कुछ अधिकारियों पर बाकायदा लेनदेन और जांच में भेदभाव बरतने के आरोप भी लगे थे। साथ ही कुछ को धमकियां भी मिलीं। शायद इसी के चलते एसटीएफ के दो अधिकारियों आशीष खरे और डीएस बघेल ने अपनी सुरक्षा के लिए आवेदन किया था। यह चर्चा भी चली कि एसटीएफ के अफसरों को डर है कि जांच के बाद में उन पर लोकायुक्त का छापा पड़ सकता है।
लक्ष्मीकांत शर्मा के खिलाफ सात अलग-अलग मामले थे, मगर उन्हें सभी में जमानत मिल गई। व्यापमं घोटाले में लक्ष्मीकांत शर्मा ही सबसे बड़ा नाम थे। उनके बाहर आने से साफ है कि अन्य आरोपी भी जमानत पर जेल से बाहर आ सकते हैं। व्यापमं मामले में एसटीएफ ने जांच के दौरान लगभग डेढ़ दर्जन परीक्षाओं में प्रति परीक्षार्थी लाखों रुपयों के लेन-देन के तर्क दिए थे। इसी आधार पर गिरफ्तारियां भी कर लीं, किन्तु रकम को बरामद करने का कोई ठोस प्रयास नहीं किया गया। शायद इन्ही कारणों से एक के बाद एक आरोपियों को जमानत मिल रही है।
कई के नाम एफआईआर से हटाए
एसटीएफ की कार्यप्रणाली पर प्रश्न तभी से उठने लगे थे जब सीबीआई ने एसटीएफ के निर्णयों की समीक्षा आरंभ की। यही वजह थी कि सीबीआई ने ऐसे कई लोगों के नाम एफआईआर से हटाए, जिन्हें एसआईटी ने आरोपी बनाया। उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं जुट सके। सीबीआई सूत्रों का मानना है कि एक आरोपी ने यदि दूसरे का नाम लिया तो सिर्फ इसी आधार पर उसे आरोपी नहीं बनाया जा सकता। यही नहीं बयानों के आधार पर भी कुछ लोगों के खिलाफ एफआईआर कर दी गई और कुछ को छोड़ दिया गया।
एसटीएफ के पास लगभग 1200 शिकायतें लंबित थी, जिन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। एसटीएफ ने इनका निराकरण नहीं किया और न ही सीबीआई को सौंपा। इसी तरह जिस वरिष्ठ चिकित्सक के माध्यम से लेनदेन की जानकारियां मिलीं, उसके खिलाफ भी कुछ नहीं किया।