नईदिल्ली। संघ के लोग यह बात भी रेखांकित करते हैं कि मोदी ऐसे नेता हैं, जो अपने विरोधियों को कभी माफ नहीं करते. उनके कई मंत्री इसी काम में लगे हैं कि जिसने कभी भी मोदी से असहमति जाहिर की हो, उसे कैसे उसकी औकात में लाना है.
इसका पहला उदाहरण संघ के लोग राजनाथ सिंह का देते हैं कि राजनाथ सिंह के पुत्र को लेकर ऐसी देशव्यापी अफवाह फैली कि राजनाथ सिंह ने परेशान होकर सबसे पहले आत्मसमर्पण किया. राजनाथ सिंह को फेसबुक में साजिशी मंत्री भी करार दे दिया गया. उनके हर कदम को इस तरह सोशल मीडिया द्वारा प्रचारित किया गया, मानो उनके ऊपर आज तलवार गिरने वाली है या कल तलवार गिरने वाली है. राजनाथ सिंह इस क्रम में पूर्णत: नियंत्रित हो गए. अरुण जेटली इस पूरे घटनाक्रम में सरकार के ऊपर हावी हो गए.
अरुण जेटली ने ललित मोदी को बांधने की रणनीति बनाते-बनाते वसुंधरा राजे सिंधिया को बांध दिया. अरुण जेटली ने ही व्यापमं घोटाले में शिवराज सिंह चौहान को बांध दिया. संघ के लोगों का कहना कि मोदी को एक शिखंडी मिला हुआ है और वह उसकी आड़ में अपने एक-एक दुश्मन का शिकार कर रहे हैं. संघ के वरिष्ठ लोग परेशान हैं, क्योंकि वे व्यक्तिआधारित व्यवस्था नहीं चाहते, वे विचार आधारित व्यवस्था चाहते हैं, जबकि भारतीय जनता पार्टी की मौजूदा सरकार व्यक्ति आधारित सरकार में बदल रही है.
सबसे रहस्यमयी व्यक्तित्व अरुण जेटली का है. अरुण जेटली क्या करना चाहते हैं, नरेन्द्र मोदी को किस तरह की तस्वीर दिखाकर उनसे किन-किन कामों को पूरा करने की हामी भरवा रहे हैं, यह किसी की समझ में नहीं आ रहा है. संघ को यह भी समझ में नहीं आ रहा है कि देश की अर्थव्यवस्था गिरती जा रही है, देश में कोई खुश नहीं है. उनके समर्थक और संपूर्ण व्यापारी वर्ग रो रहा है. व्यापार का कोई भी अंग खुश नहीं है. जनता भी दुखी है जो चुनाव परिणामों से सामने आ रहा है, लेकिन अरुण जेटली हर वह काम कर रहे हैं, जिसका रिश्ता वित्त मंत्रालय से नहीं है. बस वह वित्त मंत्रालय का काम नहीं कर रहे हैं. क्योंकि देश की आर्थिक स्थिति कहीं भी सुधरती दिखाई नहीं दे रही है.
संघ के लोग कई फैसलों के पीछे अरुण जेटली का दिमाग बताते हैं. हमें पाकिस्तान से बात करनी है या नहीं, यह फैसला भी नहीं हो पाता. हम कश्मीर में मुफ्ती मोहम्मद सईद से समझौता कर लेते हैं और सारे महत्वपूर्ण मंत्रालय मुफ्ती मोहम्मद सईद को दे देते हैं. कश्मीर में भारतीय जनता पार्टी के सारे मंत्रियों के पास ऐसे विभाग हैं जिन्हें संघ किसी मतलब का नहीं मानता और संघ ने इसी क्षोभ या गुस्से की वजह से देश में चली टॉलरेंस(सहिष्णुता) या इनटॉलरेंस(असहिष्णुता) की बहस में कहीं भी भाजपा का समर्थन नहीं किया. संपूर्ण संघ टॉलरेंस की बहस में तटस्थ रहा.