भोपाल। मां के आकस्मिक निधन के बाद पिता को छोड़कर नाना के संरक्षण में रह रही अपूर्वा अब भरण पोषण पाने लिए पिता की कुल आमदनी की जानकारी पा सकेगी। यह जानकारी उसे 4 साल के लंबे इंतजार के बाद मध्यप्रदेश राज्य सूचना आयोग के आदेश से मिलेगी। आयोग ने यह जानकारी न देने का अपीलीय अधिकारी का आदेश रद्द कर दिया है और लोक सूचना अधिकारी के जानकारी देने के निर्णय को बहाल कर दिया है, जिसे अपीलीय अधिकारी ने खारिज कर दिया था। आयोग ने अपीलीय अधिकारी को आइंदा ऐसी वैधानिक त्रुटि न करने की नसीहत देते हुए लोक सूचना अधिकारी को आदेश दिया है कि वे 7 दिन में अपीलार्थी को वांछित जानकारी निःशुल्क उपलब्ध करा कर आयोग के समक्ष सप्रमाण पालन प्रतिवेदन पेश करें।
राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने संबंधित पक्षों की सुनवाई करने के बाद पारित आदेश में कहा कि आगरा के अपीलार्थी जगन्नाथ प्रसाद अग्रवाल अपनी नातिन अपूर्वा के परिवार न्यायालय द्वारा नियुक्त विधिक संरक्षक हैं। उन्होंने अपूर्वा के लिए आवष्यक भरण पोषण राशि पाने के उद्देश्य से अपूर्वा के पिता किशोर कुमार अग्रवाल के वेतन, भत्ते सहित कुल वार्षिक परिलब्धियों की जानकारी चाही है।
यह जानकारी दी जानी चाहिए क्योंकि अपनी संतान का भरण पोषण करना प्रत्येक पिता का विधिक, नैतिक व नैसर्गिक दायित्व है जिसका निर्वहन किया ही जाना चाहिए। किशोर अग्रवाल शासकीय सेवक हैं जिनके वेतन, भत्तों आदि की जानकारी गोपनीय न होकर सार्वजनिक किए जाने योग्य है। धारा 4 के तहत ऐसी जानकारी स्वतः प्रकटीकरण किया जाना चाहिए।
अतः तृतीय पक्ष के रूप में किशोर अग्रवाल द्वारा प्रस्तुत की गई यह दलील स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है कि उनके वेतन, भत्तों आदि की व्यक्तिगत जानकारी देने से उनकी निजी स्वतंत्रता, व्यक्तिगत हित व सुरक्षा प्रभावित होगी । चाही गई जानकारी व्यक्तिगत प्रकृति की है किन्तु उसका प्रकटन लोकहित में न्यायोचित है।
पलटे आदेश
फैसले में कहा गया है कि जानकारी देने के प्रति किषोर अग्रवाल की असहमति पर लोक सूचना अधिकारी ने न्यायिक विवेक से निर्णय लिया कि जानकारी देने योग्य है। लेकिन अपीलीय अधिकारी ने ऐसा नहीं किया और न ही सूचना के आवेदन की प्रासंगिकता, उपादेयता व अपीलार्थी की हितबध्दता पर सद्भावनापूर्वक विचार किया । अतः अपीलीय अधिकारी का जानकारी न देने का आदेष विधिसम्मत व न्यायसंगत न होने के आधार पर निरस्त किया जाता है । वहीं लोक सूचना अधिकारी का निर्णय स्थिर रखे जाने योग्य होने से बहाल किया जाता है।
मात्र असहमति इंकार का आधार नहींः आयुक्त आत्मदीप ने स्पष्ट किया कि जिस व्यक्ति से संबंधित जानकारी चाही गई है, उसकी असहमति मात्र के आधार पर जानकारी देने से इंकार करना उचित नहीं है। लोक सूचना अधिकारी तथा अपीलीय अधिकारी को न्यायिक विवेक से विनिष्चय करना चाहिए कि वांछित सूचना दिलाना लोक हित व न्यायहित में है या नहीं । इस बारे में सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 11 में उल्लेखित प्रावधान स्वचलित निषेधाधिकार (आटोमेटिक वीटो) नहीं है।
यह है मामला: अपूर्वा के नाना ने आयोग को बताया कि अपनी मां अंजना की अस्वाभाविक मृत्यु के बाद से अपूर्वा 15 वर्षों से उनके पास रहकर जीवन यापन व पढ़ाई कर रही है । वे सेवानिव्त्त वृध्द हैं और अपूर्वा की उच्च षिक्षा का खर्च उठाने की स्थिति में नहीं हैं । इसलिए अपूर्वा को उसके पिता से पर्याप्त निर्वाह राषि दिलाना चाहते हैं । पिता किषोर अग्रवाल पारिवारिक न्यायालय के आदेष पर अपूर्वा को 3000/- रू. महीना देते थे जिसे उन्होने अपूर्वा के बालिग होने पर देना बंद कर दिया है।
लोक सूचना अधिकारी, कार्यालय भू अभिलेख व बंदोबस्त, ग्वालियर ने अपीलार्थी को अपूर्वा के पिता किषोर अग्रवाल से संबंधित जानकारी देने का निर्णय लिया ही था कि किषोर ने इस निर्णय के विरूध्द प्रथम अपील कर दी ।
प्रथम अपीलीय अधिकारी, संयुक्त आयुक्त भू अभिलेख ने इस आधार पर लोक सूचना अधिकारी का निर्णय रद्द कर दिया कि पर पक्ष (किषोर) की व्यक्तिगत जानकारी चाही गई जिसे देने से पर पक्ष सहमत नहीं है और उसने सूचना के प्रकटन से क्षति होने की संभावना व्यक्त की है। इसके बाद भी लोक सूचना अधिकारी ने जानकारी देने का आदेष दिया है जो अधिनियम के प्रावधानों के विपरीत होकर निरस्ती योग्य है।
जबकि लोक सूचना अधिकारी ने निर्णय में कहा था कि यद्यपि चाही गई जानकारी व्यक्तिगत है, तथापि वह न तो गोपनीय है और न ही उसके प्रकटन से किषोर अग्रवाल पर कोई विपरीत प्रभाव पड़ता है। इस तरह की सूचनाओं का प्रकटन विस्तृत लोकहित में न्यायोचित है तथा धारा 11 का किसी भी स्थिति में उल्लंघन नहीं हैं । आयुक्त आत्मदीप ने लोक सूचना अधिकारी के निर्णय को न केवल सही करार दिया है, बल्कि यह भी कहा है कि लोक सूचना अधिकारी द्वारा विधिवत दायित्व निर्वहन किया गया जो प्रषंसनीय व अनुकरणीय है।