राकेश दुबे@प्रतिदिन। “डिस्ट्रॉयिंग अ सिविलाइजेशन” नाम से एक रिपोर्ट भी जारी हुई है जिसके अनुसार नर्मदा घाटी में अभी भी हजारों परिवार सही मुआवजा और पुनर्वास से वंचित है, कई प्रभावितों को तो डूब क्षेत्र में शामिल ही नहीं किया गया है और अगर भविष्य में बांध की ऊंचाई को बढाया जाता है तो इससे और ज्यादा परिवार डूब क्षेत्र में आएंगे। मेधा पाटकर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुला पत्र भी लिखा है जिसमें उन्होंने राजनीतिक निर्णय प्रक्रिया व विकास मॉडल, दोनों मुद्दों पर अजनतांत्रिक व संवादहीन होने के आरोप लगाए है।
30 साल पहले जब यह आन्दोलन यह शुरू हुआ था तो नारा था “कोई नहीं हटेगा बांध नहीं बनेगा” लेकिन तमाम प्रतिरोध के बावजूद सरदार सरोवर बांध बन गया है । अब आन्दोलन विस्थापितों को बसाने, उन्हें मुआवज़ा दिलवाने, इसमें हो रहे भ्रष्टाचार और बांध की ऊंचाई बढ़ाए जाने के खिलाफ संघर्ष कर रहा है । इन सब के बावजूद आन्दोलन की ही वजह से ही यह संभव हो सका है कि सरदार सरोवर परियोजना और अन्य बांधों के मामले में विस्थापन से पहले पुर्नवास की व्यवस्था,पर्यावरण व अन्य सामाजिक प्रभावों पर बात की जाने लगी है . नर्मदा बचाओ आन्दोलन की तीस साल की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि इसने वर्तमान विकास के माडल पर सवाल उठाया है जिससे एक बहस की शुरुवात हुई है ।
अरूंधती राय नर्मदा बाँध पर अपने चर्चित लेख “द ग्रेटर कॉमन गुड” की शुरुवात जवाहरलाल नेहरु द्वारा हीराकुंड बांध के शिलान्यास के मौके पर दिए गए भाषण के उन लाईनों से करती है जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर आपको कष्ट उठाना पड़ता है तो आपको देशहित में ऐसा करना चाहिए| बड़ी परियोजनाओं के संदर्भ में इसी “व्यापक जनहित” की छाप अभी भी सरकारों की सोच पर हावी है। अब तो सरकारें एक कदम आगे बढ़कर नर्मदा बचाओ जैसे आन्दोलनों पर यह आरोप लगाती हैं कि वे विकास के रास्ते में रोड़े अटका रही हैं। इसकी हालिया मिसाल इस साल गर्मियों में औंकारेश्वर बांध का जलस्तर बढ़ाए जाने के विरोध में जल सत्याग्रह कर रहे किसानों को लेकर मुख्यमत्री शिवराज सिंह चौहान का दिया वह बयान है जिसमें उन्होंने कहा था कि यह आन्दोलन विकास और जनविरोधी है, इससे मध्यप्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश का नुकसान हो रहा है और इसकी जितनी भर्त्सना की जाए कम है।
नर्मदा बचाओ आन्दोलन के अनुसार अभी भी लगभग 48000 परिवार डूब क्षेत्र में हैं जिनका पुनर्वास होना बाकी है, सत्ता में आने के महज 17 दिन के अन्दर ही नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा बांध की ऊँचाई को 17 मीटर तक बढ़ाने का निर्णय लिया गया था। शिवराज विरोध तब भी नहीं कर सके थे, और अब तो सवाल ही नहीं है |
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क 9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com