दिग्विजय सिंह का तदर्थ भर्ती घोटाला: हाईकोर्ट जाएगी रिपोर्ट

भोपाल। हाईकोर्ट से आदेश मिलने के बाद दिग्विजय सिंह के कार्यकाल की छानबीन कर रहे अधिकारियों को 1982 से 1990 के बीच भर्ती हुए कॉलेज प्रोफेसस की नियुक्ति प्रक्रिया डाउटफुल लग रही है। बड़ी ही चालाकी के साथ 2000 लोगों को बिना किसी परीक्षा के प्रोफेसर बना दिया गया। पहले इन्हे तदर्थ के नाम पर अस्थाई नौकरी दी गई फिर धीरे से नियमित कर दिया गया।

 इनमें 1600 भर्तियां तदर्थ और 480 आपात स्थिति की हैं, जिन्हें संदेहास्पद माना गया है। इसे लेकर मंत्रालय में ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है। सरकार इन सभी नियुक्तियों की रिपोर्ट इसी माह हाईकोर्ट को सौंपने जा रही है। हाईकोर्ट ने बीते माह एक याचिका पर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में दैनिक वेतन भोगी के पद पर भर्ती हुए एक सब इंजीनियर की भर्ती को निरस्त कर दिया था।

साथ ही मुख्य सचिव से प्रदेश के समस्त विभागों में हुई ऐसी नियुक्तियों की जानकारी मांगी थी। इसके बाद सरकार ने उच्च शिक्षा, चिकित्सा शिक्षा, तकनीकी शिक्षा और लोक स्वास्थ्य परिवार कल्याण समेत जल संसाधन विभाग में राजपत्रित तथा गैर राजपत्रित पदों पर हुई भर्तियों की जांच कराई है।

इसमें बड़ा खुलासा 1980 से 1990 के बीच की भर्तियों में हुआ है, जब लोक सेवा आयोग की भर्तियों के मामले में भूमिका शून्य रही। परिणाम स्वरूप 1984-85 तक प्रदेश में करीब दस हजार तदर्थ में नियुक्तियां की गईं। इन सभी को नियमित करने के लिए सरकार ने 1985 में नियम बनाए और 89 दिन की सेवा पूरी होने के बाद तदर्थ पर भर्ती हुए कर्मचारी को तीन दिन की छुट्टी के बाद दोबारा नियुक्त कर दिया गया।
इसी आधार पर अफसरों की वरिष्ठता सूची तैयार कर ली गई और 1987 में पीएससी के दायरे से बाहर रखकर तदर्थ में भर्ती हुए ऐसे 1600 प्रोफेसर्स को नियमित कर दिया। इनमें लगभग साढ़े तीन सौ ऐसे थे, जो यूजीसी द्वारा सहायक प्राध्यापक की निर्धारित योग्यता को पूरा नहीं रखते थे। इन लोगों को पांच वर्ष का समय श्रेणी सुधारने के लिए दिया गया ताकि वे एमफिल या पीएचडी कर सकें। इन्हीं में से 85 प्रोफेसर्स ऐसे हैं, जो इस समय ग्रेजुएट कॉलेज में प्राचार्य की पदोन्नति पाने की तैयारी में है।

आपात भर्तियों पर भी सवालिया निशान
सरकार ने 1988 से 1992 के बीच 550 भर्तियां आपात स्थिति के नाम पर कीं, जो नियमित पदों के अनुसार नहीं थी। इन सभी को सुपरन्यूमरेरी पद बना कर 1998 में नियमित कर दिया। इस प्रकार उच्च शिक्षा विभाग में दो हजार से ज्यादा प्रोफेसर बगैर पीएससी की परीक्षा दिए प्रोफेसर बन गए। इसी दरम्यान लोक स्वास्थ्य परिवार कल्याण विभाग में भी करीब एक हजार से ज्यादा डाॅक्टर तदर्थ भर्ती हुए और नियमित कर दिए गए। लोक निर्माण और जलसंसाधन विभाग में ऐसे 850 मामले सामने आए हैं। स्कूल शिक्षा विभाग में एलडीटी, यूडीटी और लेक्चरर की नियुक्तियां हुई जिनकी संख्या 1200 के करीब है। इन सभी की जांच की जा रही है।

2009 में भर्ती 113 प्रोफेसर्स भी जांच के दायरे में
वर्ष 2008-09 में हुई 389 प्रोफेसरों की सीधी भर्ती में 113 नियुक्तियों में गड़बड़ी की जांच की जा रही है। इन प्रोफेसरों के दस वर्ष की अध्यापन की जांच पड़ताल की जा रही है। यह जांच हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ के निर्देश पर की जा रही है। इस फैसले में हाईकोर्ट के अंकिता बोहरे के प्रकरण में दिए गए फैसले को आधार बनाया गया है। इसके अनुसार पीएससी से चयनित प्रोफेसर को पीएचडी करने के बाद दस वर्ष अध्यापन अनुभव होना चाहिए। इनमें कई मध्यप्रदेश के बाहर के हैं जिन्होंने अपना अध्यापन अनुभव अन्य प्रदेशों का बताया है।

राज्य सरकार को हाईकोर्ट के फैसले के अनुसार अपनी रिपोर्ट इसी महीने पेश करना है। इस मामले में सरकार से कहा गया है कि समय सीमा में ऐसी नियुक्तियों की रिपोर्ट दे ताकि इसे कोर्ट में रखा जा सके। पुरुषेन्द्र कौरव, अतिरिक्त महाधिवक्ता, मध्यप्रदेश

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