लखनऊ। यूपी में अपनी जमीन खो चुकी कांग्रेस अब हवा के साथ बहने के मूड में है। यूपी और बिहार जातिवाद की राजनीति पर चलने वाले राज्य हैं अत: यहां कांग्रेस भी जातिवाद की राजनीति करेगी। जातियों के नेताओं को कांग्रेस में तवज्जो दी जाएगी और जातियों के आधार पर ही टिकिटों का वितरण होगा।
बिहार चुनाव के बाद फ्रंटल संगठनों के ढांचे में भी परिर्वतन संभावित है। संगठन में अगड़ा, पिछड़ा, ठाकुर या ब्राह्माण को प्रमुखता से प्रतिनिधित्व देकर वोटबैंक की सियासत से इतर गत लोकसभा चुनाव से पूर्व प्रदेश कांग्रेस में प्रदेश अध्यक्ष, विधानमंडल दलनेता व प्रभारी पदों पर नियुक्ति के प्रयोग का लाभ नहीं मिल सका।
एक पूर्व केंद्रीय मंत्री के अनुसार प्रयोग का नुकसान यह रहा कि कांग्रेस का परम्परागत वोट बैंक रही जातियों ने भी दूरी बना ली। बिहार की तरह से उत्तर प्रदेश का मिजाज भी जातिवादी राजनीति का रहा है, इसलिए सपा व बसपा जैसे जाति आधारित दल यहां अहम भूमिका में बने है। सियासी माहौल से अलहदा फार्मूले का सफल आसान नहीं क्योंकि प्रदेश पर जनाधार वाले नेतृत्व का कांग्रेस में टोटा है।
फ्रंटल संगठनों को मजबूती देंगे
फ्रंटल संगठन खासकर युवक कांग्रेस की भूमिका से नेतृत्व संतुष्ट नहीं है। क्षेत्रीय स्तर पर संगठन की रचना कर स्थानीय युवाओं को जोड़ने का कोई काम न हो सका, उल्टे युकां में एकजुटता खत्म हो गई। सूत्र बताते हैं कि फ्रंटल संगठन भी पुराने फार्मूले से तैयार कराने की योजना है ताकि प्रदेश में एकजुटता का संदेश रहे।