राकेश दुबे प्रतिदिन। इस बार माकपा की केरल इकाई श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन अपने बाल संगठन ‘बालसंघम’ के माध्यम से राज्य भर में झांकियां निकालेगी। निश्चित ही माकपा का यह एक क्रांतिकारी फैसला है, वर्ना अभी तक तो कम्युनिस्ट पार्टियां धर्म को अफीम ही बताती रही हैं।
सच बात तो यह कि धर्म को अफीम बताने के लिए वामपंथी मार्क्स की आधी-अधूरी उक्ति ही उद्धृत करते हैं। धर्म के बारे में मार्क्स की पूरी उक्ति तो इस प्रकार है 'धर्म उत्पीड़ित प्राणी की आह, हृदयविहीन विश्व का हृदय, आत्मविहीन परिवेश की आत्मा है। यह जनता की अफीम है।' यानी मार्क्स जानते थे कि धर्म मनुष्य के दुखों को कहीं तो संबल देता है। भारत में कम्युनिस्ट पार्टियां इससे दूरी बरतती रहीं। अब जब उनकी अनदेखी का लाभ भाजपा उठाने लगी| मगर अब उनकी चेतना जागी है ।
केरल में माकपा नेताओं का मानना है कि झांकियां निकाल कर और ओणम पर सप्ताह भर का कार्यक्रम कर वे बच्चों और महिलाओं को अपने साथ बनाए रखेंगे, क्योंकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा संचालित ‘बालगोकुलम’ में इनकी भागीदारी तेजी से बढ़ने लगी थी। पिछले साल ‘बालगोकुलम’ की झांकियों में कम्युनिस्ट परिवारों की महिलाओं और बच्चों ने खूब भागीदारी की थी। इससे भयभीत माकपा नेता इस बार अकेले कन्नूर जिले में ही १६२ स्थानों पर श्रीकृष्ण की झांकियां सजाएंगे। पिछले दिनों इस कन्नूर जिले की अरुविक्कारा विधानसभा सीट के उपचुनाव में भाजपा ने खासी बढ़त ली थी। कन्नूर हिंदू बहुल जिला है और माकपा को डर है कि कहीं वह अपना वोट बैंक खो न दे। गणेशोत्सव के आयोजन के लिए भी वह भाजपा के लोगों को अपने साथ ले रही है। ‘बालसंघम’ के संरक्षक वरिष्ठ माकपा नेता पी प्रभाकरन का कहना है कि बालसंघम का जुलूस और झांकियां संयोगवश श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन से आयोजित होंगे, पर यह आयोजन सिर्फ ओणम के लिए किया गया है। जबकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुताबिक, यह माकपा की सोची-समझी चाल है, क्योंकि वह नहीं चाहती कि उसके कार्यकर्ता ‘बालगोकुलम’ के आयोजन में हिस्सा लें।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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