स्मार्ट सिटी: बढ़ा कदम

राकेश दुबे@प्रतिदिन। भारत में शहरी आबादी तेजी से बढ़ रही है और यह रफ्तार आने वाले वक्त में बढ़ती जाएगी। शहरीकरण आमतौर पर फायदेमंद होता है, क्योंकि इसका अर्थ यह होता है कि समाज में खेती पर निर्भर लोगों की आबादी घट रही है। खेती से उत्पादन की एक सीमा होती है, इसलिए खेती पर निर्भर सुविधाजनक रोजगार भी एक हद से ज्यादा नहीं बढ़ सकते। 

भारत में ग्रामीण बदहाली और खेती के आर्थिक रूप से नुकसानदेह होने की एक बड़ी वजह यह भी है कि खेती पर निर्भर आबादी बहुत बड़ी है। खेती पर निर्भर आबादी बढ़ने से जोत छोटी और कम लाभदायक हो जाती हैं। अब यह जरूरी हो गया है है कि लोगों का खेती से हटकर अन्य रोजगारों में जाना जबर्दस्ती और कष्टप्रद नहीं होना चाहिए। अन्य रोजगार खेती के मुकाबले ज्यादा लाभदायक होने चाहिए। उनका जीवन-स्तर भी बेहतर हो जाना चाहिए। 

भारत में शहरीकरण के साथ काफी हद तक ऐसा नहीं हुआ है। देश के ज्यादातर शहरों में, जिनमें स्मार्ट सिटी बनाए जाने वाले शहर भी शामिल हैं, बहुत बड़ी आबादी को बुनियादी सुविधाएं हासिल नहीं हैं। आर्थिक राजधानी मुंबई में 60 प्रतिशत आबादी गंदी बस्तियों में रहती है। अन्य शहरों में भी बड़ी आबादी अच्छे आवास से वंचित है। बहुत कम शहरों में ठीकठाक सार्वजनिक परिवहन है। ऐसे शहर भी कम होंगे, जहां २४  घंटे बिजली मिलती हो। पेयजल और सफाई के इंतजाम से भी बड़ी आबादी वंचित है और देश के कई शहर दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में गिने जाते हैं। सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाएं सभी जगह बुरी हालत में हैं। समाज के कमजोर वर्ग के बच्चों को शिक्षा भी सहज उपलब्ध नहीं है। समृद्ध या मध्यवर्गीय बस्तियों में जगह-जगह सड़कों पर लगे गेट और निजी सुरक्षा गार्ड इस बात का प्रमाण हैं कि सरकारी सुरक्षा एजेंसियां अपना काम ठीक से नहीं कर रही हैं। इन स्थितियों को बदलने के लिए एक व्यापक योजना पर काम होना बहुत अच्छी बात है, लेकिन इसमें कठिनाइयां भी बहुत हैं। 

इसके लिए कई सरकारी  नियम बदलने होंगे, ताकि शहरी जमीन का कारोबार साफ-सुथरा हो सके और जमीन सहज उपलब्ध हो। कई सुविधाओं का निजीकरण करना होगा और यह भी सुनिश्चित करना होगा कि निजीकरण में सार्वजनिक लाभ प्राथमिक हो, भ्रष्टाचार नहीं। फिर इतना बड़ा काम राजनीतिक आम सहमति के बिना नहीं हो सकता, इसलिए नेताओं को संकीर्ण राजनीति से उठने का बड़प्पन दिखाना होगा।शहरों को बेहतर बनाने की योजना अर्थव्यवस्था को बहुत आगे ले जा सकती है। जब शहरों में बुनियादी सुविधाएं निर्मित होंगी या बेहतर होंगी, तो सीमेंट और इस्पात से लेकर आईटी जैसे तमाम उद्योगों को गति मिलेगी। जाहिर है, यह सारा काम सरकार के बूते का नहीं है, इसमें निजी क्षेत्र का ही निवेश ज्यादा होगा। निजी क्षेत्र निवेश के लिए तैयार हो, इसके लिए सरकार को योजनाएं बनाने और उन्हें लागू करने में अपनी विश्वसनीयता बढ़ानी होगी। अगर यह विश्वसनीयता होगी, तो पूंजी की कोई समस्या नहीं होगी। अगर वह सचमुच कामयाब हुई, तो स्मार्ट सिटी की यह योजना शहरों को ही नहीं, पूरे देश को बदल सकती है।

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