जबलपुर। लाइन बड़ी लम्बी थी लेकिन जिम्मेदारों ने एडमिशन नहीं दिया और शासकीय मेडिकल कॉलेजस में पीजी की 20 प्रतिशत सीटें छिपा ली गईं। ऐसा क्यों किया गया। इसके पीछे क्या लक्ष्य था। हाईकोर्ट ने सवाल जवाब किया है। इस सिलसिले में राज्य शासन, प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा और संचालक चिकित्सा शिक्षा (डीएमई) को नोटिस जारी किए गए हैं।
सोमवार को प्रशासनिक न्यायाधीश राजेन्द्र मेनन व जस्टिस सुशील कुमार गुप्ता की युगलपीठ में मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ता रीवा निवासी डॉ.हेमंत कोष्टी सहित अन्य का पक्ष अधिवक्ता आदित्य संघी ने रखा।
कुल 200 में से 40 सीटें खाली
उन्होंने दलील दी कि राज्य के शासकीय मेडिकल कॉलेजेस में पीजी की कुल 200 सीटें हैं। 7 जून को पहले चरण की काउंसिलिंग पूरी हुई। इस दौरान 18 सीटों पर एडमिशन नहीं दिया गया। उन्हें बचा लिया गया। । उसके बाद 8, 9, 10 जून को ऑल इंडिया कोटे की 22 सीटें भी खाली छोड़ दी गईं। इस तरह मध्यप्रदेश में पीजी कोर्स एडी मेडिसिन व एसमएस ऑर्थो सहित अन्य की कुल 40 सीटें खाली रह गईं। प्रतिशत की दृष्टि से 20 फीसदी सीटें इस सत्र में बेकार जाने की स्थिति पैदा हो गई है।
प्राइवेट में 2-2 करोड़ की बिकतीं
बहस के दौरान अधिवक्ता आदित्य संघी ने साफ शब्दों में कहा कि यदि इतनी सीटें राज्य के निजी मेडिकल कॉलेज अपने स्तर पर भरने तो एक-एक सीट 2-2 करोड़ रुपए में बिकती। इसके बावजूद डीएमई बजाए नए सिरे से काउंसिलिंग के जरिए रिक्त 40 सीटें भरवाने की दिशा में प्रयास के मौन धारण किए हुए हैं। उनका यह रवैया चिंताजनक है।
व्यापमं घोटाले में बाद चिकित्सा क्षेत्र संकट में
हाईकोर्ट को अवगत कराया गया कि राज्य में व्यापमं घोटाले के बाद चिकित्सा क्षेत्र संकट में है। यहां नए डॉक्टर्स की कमी महसूस की जा रही है। ऐसे में पीजी स्तर की 40 बेशकीमती सीटों को बेकार जाने देना समझदारी नहीं है। इस रवैये के औचित्य को लेकर जवाब-तलब किया जाना चाहिए। हाईकोर्ट ने सुनवाई के बाद 4 सप्ताह में जवाब पेश करने निर्देश दे दिए।
सिर्फ एक सवाल
सवाल यह है कि आखिर क्यों सीटों को खाली छोड़ दिया गया। कहीं ऐसा तो नहीं कि प्राइवेट कॉलेजों की तरह शासकीय कॉलेजों की सीटें भी बिक रहीं थीं। 40 सीटों पर ग्राहक नहीं मिले इसलिए उन्हें खाली छोड़ दिया गया। योग्य छात्रों को मुफ्त सीट देने के लिए कोई तैयार नहीं था।